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________________ जैन न्याय यही तो उस ज्ञानकी दिव्यता है कि वह अनुत्पन्न और विनष्ट पर्यायोंको भी जान लेता है (१-३७,३८,३९)। इस तरह आचार्य कुन्दकुन्दने तर्कपूर्ण दार्शनिक शैलीका अवलम्बन लेकर प्रत्यक्ष और परोक्ष प्रमाणोंके जैन सिद्धान्त सम्मत लक्षणोंका उपपादन किया। आचार्य उमास्वामि कुन्दकुन्दके उत्तराधिकारी आचार्य उमास्वामिने 'प्रमाणनयर धिगमः' इस सूत्रके द्वारा स्पष्ट रूपसे प्रमाणकी चर्चाको अवतरित किया और नयको प्रमाणसे पृथक् रखकर प्रमाणकी तरह नयको भी समान स्थान दिया। उन्होंने पांच ज्ञानोंको ही प्रमाण बतलाया तथा प्रत्यक्ष और परोक्ष भेदोंमें विभाजित करके "मतिः स्मृतिः संज्ञा चिन्ताभिनिबोध इत्यनर्थान्तरम्" सूत्रके द्वारा दर्शनान्तरमें मान्य प्रमाणोंका अन्तर्भाव परोक्ष प्रमाणमें किया। इस तरह आचार्य उमास्वामीने तत्त्वार्थ सूत्रके द्वारा ऐसे बीजोंका वपन किया, जो कालक्रमसे प्रस्फुटित होकर प्रमाणविषयक चर्चाके आधार बने । स्वामी समन्तभद्र और सिद्धसेन आचार्य कुन्दकुन्द और उमास्वामीके पश्चात् जैन वाङ्मयके नीलाम्बरमें कालक्रमसे दो जाज्वल्यमान नक्षत्रोंका उदय हुआ। ये दो नक्षत्र थे स्वामी समन्तभद्र और सिद्धसेन दिवाकर । स्वामी समन्तभद्र प्रसिद्ध स्तुतिकार थे। बादके कुछ ग्रन्थकारोंने इसी विशेषणके साथ उनका उल्लेख किया है । अपने इष्टदेवकी स्तुतिके व्याजसे उन्होंने एक ओर हेतुवादके आधारपर सर्वज्ञकी सिद्धि की, दूसरी ओर विविध एकान्तवादोंकी समीक्षा करके अनेकान्तवादकी प्रतिष्ठा की। उनकी लेखनीका केन्द्रबिन्दु केवल अनेकान्तवाद था। उसीके स्थापन और विवेचनमें उन्होंने अपनी प्राजल लेखनीका सदुपयोग किया। इसीसे उनके ग्रन्थोंमें अनेकान्तवादके फलितवाद नय और सप्तभंगीका भी निरूपण मिलता है। उन्होंने जैन परम्परामें सम्भवतया सर्वप्रथम न्याय शब्दका प्रयोग करके एक ओर न्यायको स्थान दिया तो दूसरी ओर न्याय शास्त्रमें स्याद्वादको गुम्फित किया।-(स्वयंभू स्तोत्र श्लोक १०२) उन्होंने ही सर्वप्रथम सर्वज्ञताकी सिद्धि में नीचे लिखा अनुमान उपस्थित किया १. तत्त्वार्थसूत्र १-६ । २. 'तत्प्रमाणे' १-१० । ३. तत्त्वार्थसूत्र १.१३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002089
Book TitleJain Nyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1966
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Nyay, & Epistemology
File Size16 MB
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