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परोक्षप्रमाण
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आवश्यकता अनुमानके लिए होती है, किन्तु जब साध्य और साधनको प्रत्यक्ष से ही जान लिया तब अनुमान की आवश्यकता ही नहीं रहती ।
तथा नैयायिकने जो यह कहा है कि 'व्याप्तिका उल्लेख अनुसंन्धानसे होता है' सो उसका यह कहना ठीक है, क्योंकि जैनदर्शन उपलम्भ और अनुपलम्भसे होनेवाले ज्ञानको ही व्याप्तिकी प्रतिपत्ति कराने में समर्थ मानता है । किन्तु वह ज्ञान प्रत्यक्ष रूप नहीं है, उसको उत्पादक सामग्री और विषय प्रत्यक्षसे भिन्न ही है । प्रत्यक्ष तो इन्द्रिय आदि सामग्रोसे उत्पन्न होता है और इन्द्रियसे सम्बद्ध वर्तमान अर्थको विषय करता है, यह बात प्रसिद्ध है । किन्तु तर्क नामका वह ज्ञान वैसा नहीं है तब उसे प्रत्यक्ष रूप कैसे माना जा सकता है ?
शंका- यदि तर्कज्ञान प्रत्यक्ष रूप नहीं है तो वह इन्द्रियोंकी अपेक्षा क्यों करता है ?
उत्तर - व्याप्तिज्ञान के कारण हैं - प्रत्यक्ष और अनुपलम्भ | और प्रत्यक्ष तथा अनुपलम्भ में इन्द्रिय कारण है । अतः इन्द्रिय तर्कके कारणकी कारण है । इसलिए तर्क में इन्द्रियोंको अपेक्षा होती है । अतः इन्द्रियजन्य प्रत्यक्ष व्याप्तिको जानने में समर्थ नहीं है । मानस प्रत्यक्ष भी व्याप्तिको नहीं जान सकता; क्योंकि बाह्य इन्द्रकी सहायता के बिना बाह्य पदार्थोंमें मनकी प्रवृत्ति नहीं होती । और व्याप्ति बाह्य पदार्थों का धर्म होनेसे बाह्य पदार्थ है । इसके सिवा न्यायदर्शन में मनको अणुरूप माना है । अतः अणुरूप मनका एक साथ समस्त पदार्थोंके साथ सम्बन्ध नहीं हो सकता । वह व्याप्तिको कैसे जान सकता है ?
अतः इन्द्रियजन्य प्रत्यक्ष और मानसप्रत्यक्ष व्याप्तिको नहीं जान सकते । इसी तरह योगिप्रत्यक्ष भी व्याप्तिको नहीं जान सकता; क्योंकि वह विचारक नहीं है, अत: 'जितना भी धूम है वह सब अग्निसे ही उत्पन्न होता है, बिना अग्निके नहीं होता' इस तरहका विचार वह नहीं कर सकता । अतः किसी भी प्रत्यक्षसे साध्य और साधनको व्याप्तिको नहीं जाना जा सकता । अतः व्याप्तिके ग्राहक तर्कको एक पृथक् प्रमाण मानना आवश्यक है । उसके विना व्याप्तिका ग्रहण नहीं हो सकता और व्याप्तिका ग्रहण हुए बिना अनुमान प्रमाण नहीं बन सकता । अतः जैसे अनुमान के बिना साध्यको सिद्धि नहीं होती इसलिए अपने-अपने अभीष्ट तवकी सिद्धिके लिए अनुमान आवश्यक है वैसे ही साध्य और साधनकी व्याप्तिके सिद्ध हुए विना अनुमान नहीं बन सकता । अतः अनुमानकी सिद्धिके लिए व्याप्तिको सिद्धि आवश्यक है अतः उसके लिए तर्क नामका पृथक् प्रमाण मानना
चाहिए ।
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