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जैन न्याय
हेतुका अविनाभाव तो कारण मात्रके साथ है अतः कार्यमात्र हेतुसे कारणमात्रका ही अनुमान किया जा सकता है । और उसमें हमें कोई विवाद नहीं है ।
नैयायिक-जैसे धूममात्रसे अग्निमात्रका अनुमान करते हैं वैसे ही कार्यमात्रसे बुद्धिमान् कारणका अनुमान करते हैं।
जैन-अनुमानकी प्रवृत्ति अविनाभाव सम्बन्धके बलसे होती है। और अविनाभाव सम्बन्ध कार्यमात्रका कारणमात्रके साथ ही जाना गया है न कि बुद्धिमान् कारण-विशेषके साथ । धूममात्र भी अग्निमात्रका साधक नहीं है, क्योंकि ऐसा माननेसे, जहाँसे आग हटा ली गयी है उस कोठरीमें भरे हुए धूमसे व्यभिचार आता है। किन्तु नीचेसे क्रमबद्ध रूपमें ऊपरको उठता हुआ धुआं अग्निका अनुमापक होता है। उसी तरह कृतबुद्धिका उत्पादक जो कार्यत्व है उससे बुद्धिमान् कारणकी सिद्धि हो सकती है, कार्यत्व मात्रसे नहीं।
यदि जिसका अन्वय-व्यतिरेक बुद्धिमान् कर्ताके साथ निश्चित है ऐसे कार्यत्वविशेषको हेतु मानते हैं तो इस प्रकारका हेतु असिद्ध है; क्योंकि इस प्रकारके हेतुका पृथिवी आदिमें अभाव है। यदि इस प्रकारका कार्यत्व पृथिवी आदिमें रहता है तो जैसे पुराने कूप और महल वगैरहको देखकर, जिन्होंने उन्हें बनता हुआ नहीं देखा है, उन्हें भी यह बुद्धि होती है कि किसी बुद्धिमान् कारीगरने इन्हें बनाया है, वैसे ही पृथिवी आदिके विषयमें भी होना चाहिए।
नैयायिक-जो वस्तु किसोके द्वारा कृत हो उसमें कृतबुद्धि होना ही चाहिए, ऐसा कोई नियम नहीं है । खोदकर पुनः भर दी गयी पृथ्वी में तथा कृत्रिम मणिमुक्ता वगैरहमें, जिन्होंने उन्हें बनता नहीं देखा, उन्हें कृतबुद्धि नहीं होती।
जैन-खोदकर भर दी गयो भूमिमें और अकृत्रिम भूमिमें आकारादिको समानता पायी जाती है इसलिए उसमें कृत बुद्धि नहीं होती। शायद आप कहें कि पृथिवी वगैरहमें भी अकृत्रिम आकारको समानता पायी जाती है किन्तु ऐसा कहना ठीक नहीं है, क्योंकि अकृत्रिम आकार तो आप मानते ही नहीं आपके मतसे तो सभी जगत् कृत्रिम है। अतः आपको पुराने कूप वगैरहमें, जिन्होंने उन्हें बनता नहीं देखा उनको भी कृतबुद्धि करानेवाला, और पृथिवो आदिमें कभी भी न पाया जानेवाला, जिनको बनाता हुआ देखा है, ऐसे कूप वगैरहकी सजातीयता रूप विशेष मानना चाहिए। और ऐसी स्थिति में आपका हेतु असिद्ध क्यों नहीं है, अपितु है । अथवा हेतु सिद्ध भी रहा तो भी वह विरुद्ध है, क्योंकि उससे घटादिकी तरह शरीर आदिसे विशिष्ट बुद्धिमान् कर्ता ही सिद्ध होता है। शायद कहा जाये कि इस तरह विरुद्धताकी उपपत्ति करनेसे तो सभी अनुमानोंका उच्छेद हो
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