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प्रमाणके भेद
नाम सावयवत्व है, या अवयवोंसे रचना होनेका नाम सावयवत्व है; या प्रदेशत्वका नाम सावयवत्व है या 'सावयव' इस प्रकारकी बुद्धिका जो विषय हो वह सावयव है । प्रथम पक्ष में अवयव सामान्य ( अवयवत्व ) से व्यभिचार आता है; क्योंकि वह कार्य नहीं है फिर भी अवयवोंमें रहता है । दूसरे पक्ष में हेतु साध्यके तुल्य हो जाता है; क्योंकि जैसे पृथिवी आदिमें कार्यपना साध्य है वैसे ही उनका परमाणु आदि अवयवोंसे रचा जाना भी साध्य है, वह सिद्ध नहीं है । तीसरे पक्ष में आकाश आदिसे व्यभिचार आता है; क्योंकि आकाश भी सप्रदेशी है, किन्तु कार्य नहीं है | आकाशके सप्रदेशी होनेको आगे सिद्ध करेंगे । यदि 'सावयव है' इस प्रकारकी बुद्धिका विषय होना सावयवत्व है, तो इसमें भी आकाशसे व्यभिचार आता है । अतः यदि कार्यत्वका मतलब सावयवत्वसे है, तो वह ठोक नहीं है ।
जो पहले नहीं था उसका अपने कारणोंकी सत्ता से सम्बन्ध होनेका नाम यदि कार्यत्व है तो यह भी ठीक नहीं है; क्योंकि समवाय सम्बन्धको आपने नित्य माना है, अतः वह कार्य नहीं हो सकता । 'कृत' इस प्रकारकी बुद्धिका जो विषय है वह कार्य है, यह भी ठीक नहीं है; क्योंकि खोदने वगैरह से निष्पन्न हुए आकाश में भी 'कृत' इस प्रकारका व्यवहार पाया जाता है, किन्तु आकाश कार्य नहीं है । यदि विकारित्वका नाम कार्यत्व है तो ईश्वर भी कार्य हो जायेगा । सत् वस्तुमें परिवर्तन होने का नाम विकारित्व है । इस प्रकारका विकारित्व ईश्वर में भी है, अतः वह भो कार्य होनेसे किसी अन्य बुद्धिमान् के द्वारा बनाया गया माना जायेगा । और इस तरह अनवस्था दोष उपस्थित होगा । यदि ईश्वर अविकारी है तो वह कार्योंको नहीं कर सकता । अतः कार्यत्व हेतुका स्वरूप विचारनेपर नहीं बनता । इसलिए कार्यत्व हेतु असिद्ध है । तथा जो वस्तु कादाचित्क ( कभी - कभी ) होती है, लोकमें उसे ही कार्य कहते हैं । जगत् तो ईश्वरकी तरह सदा स्थायी है, वह कार्य कैसे हो सकता है ? यदि कहा जायेगा कि जगत् के अन्दर वर्तमान वृक्ष वगैरह कार्य हैं अतः जगत् भी कार्य हैं तो ईश्वर में रहनेवाली बुद्धि आदि और परमाणु आदिमें रहनेवाले पाकज रूपादि भी कार्य हैं, अतः ईश्वर और परमाणु आदि भी कार्य कहलायेंगे । और ऐसा मानने पर उनको भी उत्पन्न करनेवाला कोई दूसरा बुद्धिमान् माननेसे अनवस्था दोष आता है ।
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जगत्को कार्य मान भी लें तो यह प्रश्न होता है, कि कार्यत्व हेतुसे आप कार्य मात्र लेते हैं या कार्यविशेष लेते हैं ? यदि कार्यमात्र लेते हैं तो कार्यत्व मात्र हेतुसे बुद्धिमान् कारण विशेषका अनुमान कैसे करते हैं ? क्योंकि कार्य मात्र
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