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प्रमाणके भेद
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विलक्षण हैं । साध्य और दृष्टान्त घर्मो में सर्वथा समानता नहीं होती, क्योंकि ऐसा मानने से कोई अनुमान नहीं बन सकता । जैसी अग्नि रसोईघर में होती है वैसी ही पर्वत में नहीं होती ।
वह ईश्वर एक है क्योंकि अनेक भी कर्ता एक अधिष्ठाताके द्वारा नियन्त्रित होकर ही कार्य करते हैं । किसी बड़े महत्त्व वगैरह के निर्माण में लगे सभी कारीगर और मजदूर किसी एक सूत्रधारके नियन्त्रणमें रहकर ही कार्य करते देखे जाते हैं । शायद कहा जाये कि जब ईश्वरकी इच्छा वगैरह नित्य और एक रूप है तो कार्यों में सदा एकरूपता रहनी चाहिए और कार्य सदा ही उत्पन्न होते रहना चाहिए; किन्तु ऐसा कहना ठीक नहीं है क्योंकि सहायक सामग्रीकी विचित्रता से तथा उसके सदा प्राप्त न रहनेसे जगत्के कार्यों में विचित्रता तथा अनित्यता पायी जाती है ।
शंका- पुराने महलों तथा कुएँ वगैरहको हमने बनते हुए नहीं देखा, किन्तु फिर भी उन्हें देखकर उनके कर्ता किसीके द्वारा बनाये जानेकी बात ध्यानमें स्वयं आ जाती है । किन्तु पृथिवी, पर्वत वगैरहको देखकर यह बात मनमें नहीं आती कि इन्हें किसीने बनाया है । अतः दृष्टान्त घटादिमें जिस प्रकारका कार्यत्व रहता है, वह कार्यत्व पृथ्वी आदिमें नहीं रहता । इसलिए आपका कार्यत्व हेतु असिद्ध हैं ।
समाधान - उक्त कथन ठीक नहीं है । कार्यत्व हेतुका बुद्धिमत्कारण पूर्वकत्वके साथ अविनाभाव सिद्ध है । जितने भी कृतक ( बनाये गये ) पदार्थ होते हैं वे सब अपने विषयसे कृतबुद्धिको उत्पन्न करते ही हैं, ऐसा कोई नियम नहीं है । जमीनको खोदकर उसे पुनः भर देनेपर, जिसने उसे ऐसा होते हुए नहीं देखा उसे कभी भी यह बुद्धि नहीं होती कि यह जमीन खोदकर भरी गयी है ।
शंका - स्वयं उगी हुई वनस्पतिसे उक्त हेतुमें व्यभिचार आता है; क्योंकि किसी बुद्धिमान् कर्ताके न होते हुए भी वह वनस्पति अपनी कारणसामग्रीसे स्वतः उत्पन्न होतो है ।
समाधान —— वह वनस्पति भी पक्षकोटि में सम्मिलित है अर्थात् पृथ्वी, पर्वत आदिकी तरह हम उसको भी किसी बुद्धिमान् कर्ता के द्वारा ही उगायी हुई सिद्ध करते हैं; क्योंकि वह भी कार्य है । और जो पक्ष के अन्तर्भूत होता है, उसीमें हेतुको व्यभिचार देनेपर कोई भी हेतु गमक नहीं हो सकता और ऐसी स्थिति में अनुमान मात्रका ही उच्छेद हो जायेगा । उक्त वनस्पतिका कर्ता कोई बुद्धिमान् व्यक्ति नहीं है, यह बात आप अनुपलब्धि रूप हेतुसे सिद्ध करते हैं अर्थात् चूँकि उसका कोई कर्ता दिखाई नहीं देता इसलिए वह नहीं है । किन्तु ऐसा मानना युक्त नहीं है । जो वस्तु दिखाई देने योग्य होते हुए भी दिखाई नहीं देती, अनुप
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