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जैन न्याय
आदि पदार्थों का स्पष्ट बोध होता है तो वह प्रत्यक्ष क्यों नहीं है । तथा जैसे इन्द्रिय प्रत्यक्षके द्वारा दूरवर्ती पदार्थों का ग्रहण होनेपर भी उसके स्पष्टग्राही होने में कोई विरोध नहीं है वैसे ही दूरकालवर्ती पदार्थको ग्रहण करनेपर भी अतीन्द्रिय प्रत्यक्षके स्पष्टग्राही होने में कोई विरोध नहीं है। किन्तु ऐसा होनेसे अतीत पदार्थ भी वर्तमान कहलायेगा ऐसी आपत्ति उचित नहीं है। क्योंकि अतीत वस्तुको अतीत रूपसे ही जानता है, वर्तमान रूपसे नहीं जानता।
शंका--जब' सर्वज्ञ एक क्षणमें ही सब पदार्थों को जान लेता है तो दूसरे क्षणमें उसे जाननेके लिए कुछ भी नहीं रहता, अतः वह अज्ञ कहा जायेगा। तथा जब वह रागी मनुष्योंमें स्थित रागको जानेगा तो वह भी रागी हो जायेगा?
उत्तर-यह भी ठीक नहीं है, यदि दूसरे क्षण में पदार्थोंका अथवा उसके ज्ञानका अभाव हो जाये तो वह अज्ञ हो सकता है। किन्तु ऐसा नहीं होता; क्योंकि सर्वज्ञका ज्ञान तथा दुनियाके पदार्थ, दोनों ही अनन्त हैं । अतः प्रथम क्षणमें सर्वज्ञ भावि पदार्थों को 'ये भविष्य में उत्पन्न होंगे' इस रूपसे जानता है, न कि वर्तमान रूपसे । बादको उत्पन्न होनेपर वे ही पदार्थ वर्तमान रूपसे प्रतिभासित होते हैं । अत: जिस समय जो वस्तु जिस धर्मसे विशिष्ट होती है उस समय सर्वज्ञके ज्ञानमें उसी रूपसे प्रतिभासित होती है। रही दूसरी आपत्ति, सो वह भी अनुचित है; क्योंकि रागादि रूपसे परिणमन करनेसे ही कोई रागी होता है, रागको जानने मात्रसे कोई रागी नहीं हो जाता। अन्यथा जिस समय कोई पुरुष मदिरा पान छुड़ानेके लिए मदिराकी बुराई बतलाता है उस समय वह भी शराबी कहा जायेगा। अतः जिस मनुष्यमें इन्द्रियोंमें उद्रेक पैदा करनेवाली वासना जागृत होती है, वही रागादिमान कहा जाता है; किन्तु जो वीतराग होता है, वही सर्वज्ञ होता है, अतः सर्वज्ञमें जानने मात्रसे रागका सद्भाव नहीं माना जा सकता।
शंका-यदि सर्वज्ञका ज्ञान संसारके आदि और अन्तको जान लेता है तो संसार अनादि अनन्त नहीं रहता, और यदि नहीं जानता तो वह सर्वज्ञ कैसे हुआ।
उत्तर-यह पहले कह आये हैं कि जो वस्तु जिस रूपसे स्थित होती है, उसको सर्वज्ञ उसी रूपसे जानता है । अतः जो अर्थ अनादि-अनन्त रूपसे स्थित है उसको सर्वज्ञ अनादि-अनन्त रूपसे ही जानता है।
शंका-यदि सर्वज्ञ भविष्यको जानते हैं तो भविष्य भी निश्चित हो जाता है । और जब भविष्य निश्चित है तो पुरुषार्थ व्यर्थ ठहरता है ?
१. प्रमेयक०, पृ० २६०।
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