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________________ १७४ जैन न्याय मीमालक-'सूक्ष्म आदि पदार्थ किसीके प्रत्यक्ष हैं; क्योंकि अनुमेय हैं' आपका यह अनुमान ठीक नहीं है; क्योंकि इसमें दूसरे अनुमानसे बाधा आती है। वह अनुमान इस प्रकार है-'सूक्ष्म आदि पदार्थों का साक्षात्कार करनेवाला कोई नहीं है; क्योंकि वह प्रमेय स्वरूप है, सत्स्वरूप है और वस्तु स्वरूप है जैसे हमलोग हैं। कहा भी है-'जिस सर्वज्ञकी सत्ताका खण्डन करने में प्रत्यक्ष आदि प्रमाणोंसे सिद्ध प्रमेयत्व आदि हेतु समर्थ हैं, उसे कौन मानेगा।' जैन-यह भी ठीक नहीं, क्योंकि जिन हेतुओंसे आप सूक्ष्म आदि पदार्थोंके प्रत्यक्षका निषेध करते हैं । उन्हींसे वे किसी के प्रत्यक्ष सिद्ध होते हैं । यथा-सूक्ष्म आदि पदार्थ किसीके प्रत्यक्ष हैं; क्योंकि वे प्रमेय हैं, सत् हैं और वस्तु हैं । जोजो प्रमेय, सत् और वस्तुरूप हैं वे सब किसीके प्रत्यक्ष हैं जैसे स्फटिक मणि । इस तरह प्रमेयत्व सत्त्व आदि हेतु तो सूक्ष्म आदि पदार्थों के प्रत्यक्ष होनेको ही पुष्ट करते हैं तब मीमांसक उनके द्वारा सर्वज्ञका निषेध कैसे कर सकता है ? मीमांसक-सूक्ष्म आदि पदार्थोंको आप इन्द्रिय प्रत्यक्षके द्वारा किसीके प्रत्यक्ष सिद्ध करते हैं अथवा अतीन्द्रिय प्रत्यक्षके द्वारा । प्रथम पक्ष ठीक नहीं क्योंकि सूक्ष्म आदि पदार्थों का इन्द्रियके साथ सर्वथा सम्बन्ध नहीं होता अतः वे किसीके इन्द्रियज्ञानके विषय नहीं हो सकते । यदि अतीन्द्रिय प्रत्यक्षके द्वारा प्रत्यक्ष सिद्ध करते हैं, तो अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष तो अप्रसिद्ध है। जैन-हम इन्द्रिय प्रत्यक्ष के द्वारा सूक्ष्म आदि पदार्थों का प्रत्यक्ष नहीं मानते । यदि कोई यह सिद्ध करने की कोशिश करे कि सूक्ष्म आदि पदार्थोंका इन्द्रियके द्वारा प्रत्यक्ष होता है तो हम भी आपके साथ उसका विरोध करने के लिए तैयार हैं। और न अतीन्द्रिय प्रत्यक्षसे ही उनका प्रत्यक्ष होना सिद्ध करते हैं, जिससे आप यह आपत्ति दे सकें कि हम तो अतीन्द्रिय प्रत्यक्षसे परिचित ही नहीं हैं। हम तो प्रत्यक्ष सामान्यसे सूक्ष्म आदि पदार्थोंका प्रत्यक्ष होना सिद्ध करते है । और सूक्ष्म आदि पदार्थों के सामान्य रूपसे किसीके प्रत्यक्ष सिद्ध होनेपर वह प्रत्यक्ष इन्द्रिय और मनसे निरपेक्ष हो सिद्ध होता है । यथा-सर्वज्ञका प्रत्यक्ष इन्द्रिय और मनकी सहायतासे निरपेक्ष होता है; क्योंकि वह सूक्ष्म आदि पदार्थों को जानता है। जो प्रत्यक्ष इन्द्रियादिसे निरपेक्ष नहीं होता वह सूक्ष्म आदि पदार्योंको विषय नहीं करता। जैसे हमारा प्रत्यक्ष । किन्तु सर्वज्ञका प्रत्यक्ष सूक्ष्म आदि पदार्थों को विषय करता है, अतः वह इन्द्रिय और मनकी सहायतासे नहीं होता। १, मी० श्लो० वा०, चोदनासूत्र, का० १३२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002089
Book TitleJain Nyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1966
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Nyay, & Epistemology
File Size16 MB
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