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प्रमाणके भेद
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है, अतः सबको सर्वज्ञके ज्ञापकका अनुपलम्भ है। इस तरहसे सर्वज्ञके ज्ञापकके अनुपलम्भके अभावमें न हो सकनेवाली कोई बात होती तो उसके आधारपर अन्यथानुपपत्ति प्रमाणके द्वारा सर्वसम्बन्धिज्ञापकानुपलम्भको जाना जा सकता था सो कोई है नहीं। इसी तरह उपमान प्रमाणसे भी सर्वसम्बन्धिज्ञापकानुलम्भको नहीं जाना जा सकता। इस तरह जब सर्वसम्बन्धिज्ञापकानुपलम्भको प्रत्यक्ष, अनुमान, अर्थापत्ति और उपमान प्रमाणसे नहीं जाना जा सकता तो केवल आगम प्रमाण शेष रहता है। किन्तु मीमांसक आगम प्रमाण वेदसे भी यह नहीं कह सकता कि सबको सर्वज्ञके ज्ञापक प्रमाणका अनुपलम्भ है; क्योंकि मीमांसक वेदको केवल यज्ञ-यागादिके विषयमें प्रमाण मानता है, तब वह वेद सर्वज्ञको सत्ता या असत्ताके विषयमें प्रमाण कैसे हो सकता है ? शायद कहा जाये कि अभाव प्रमाणसे हम यह बात जानते हैं कि सबको सर्वज्ञके ज्ञापक प्रमाणका अनुपलम्भ है। किन्तु ऐसा कहना भी ठीक नहीं है क्योंकि प्रभाव प्रमाणको प्रवृत्ति सर्वत्र नहीं होती। आपने ही माना है कि दृश्य वस्तुका दर्शन न होना उसके अभावमें प्रमाण है, केवल दिखाई न देनेसे ही किसीका अभाव नहीं माना जा सकता । अतः जो घटको खोजता है वह पहले घड़ा रखनेकी जगहको देखता है। फिर उसे घड़ेका स्मरण होता है उसके पश्चात् इन्द्रियोंकी सहायताके बिना ही उसके मनमें यह ज्ञान होता है कि घड़ा नहीं है यह अभाव प्रमाण है । आपके इस कथनके अनुसार पहले सब मनुष्योंको जानना चाहिए, फिर सर्वज्ञके ज्ञापक प्रमाणोंका स्मरण होना चाहिए। तब सबको सर्वज्ञके ज्ञापक प्रमाणोंका अनुपलम्भ है, ऐसा ज्ञान हो सकता है । किन्तु सब मनुष्योंका साक्षात् ज्ञान एक साथ हो नहीं सकता, और न क्रमसे ही हो सकता है क्योंकि अपने सिवा अन्य आत्माओंका प्रत्यक्ष आपको इष्ट नहीं है, अर्थात् आत्मान्तरका प्रत्यक्ष होना आप नहीं मानते । दूसरे क्रमसे सब आत्माओंको जानने में एक बाधा और भी है। जिस समय किसी एक आत्माको ज्ञापकोपलम्भके अभावका ज्ञान होगा, उस समय अन्य मनुष्यसम्बन्धी ज्ञापकोपलम्भके अभावका ज्ञान नहीं होगा। तब 'सबको ज्ञापकका अनुपलम्भ है' यह ज्ञान कैसे हो सकता है। तथा मीमांसकके मतमें किसी अन्य प्रमाणसे भी सब मनुष्योंका ज्ञान नहीं हो सकता; क्योंकि उनके सूचक लिंग आदिका अभाव है। इसके सिवा, पहले सर्वज्ञके ज्ञापकका उपलम्भ सिद्ध हो तो पीछे उसका स्मरण होनेपर 'सर्वज्ञके ज्ञापकका अनुपलम्भ है ऐसा ज्ञान अभाव प्रमाणसे हो सकता है। किन्तु सर्वज्ञके ज्ञापकका उपलम्भ ही सिद्ध नहीं है।' शायद आप ( मोमांसक ) कहें कि जैन लोग सर्वज्ञके ज्ञापक प्रमाणका उप
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