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नैन न्याय
गर्भः सर्वज्ञः' इत्यादि वाक्य पाये जाते हैं, अतः वेदसे सर्वज्ञ सिद्ध होता है। किन्तु ऐसा कहना ठीक नहीं है क्योंकि इस तरहके वाक्य यागकी ही प्रशंसामें कहे गये हैं, अतः वे सर्वज्ञके साधक नहीं हैं। इसके सिवा सर्वज्ञ तो सादि है और वेद अनादि है । तब अनादि वेदमें सादिसर्वज्ञका कथन कैसे हो सकता है। अतः नित्य आगम भी सर्वज्ञका साधक नहीं है। रहा अनित्य आगम, तो वह सर्वज्ञ रचित है या किसी साधारण पुरुषका बनाया हुआ है ? सर्वज्ञरचित आगमसे सर्वज्ञकी सिद्धि माननेपर परस्पराश्रय नामका दोष आता है; क्योंकि जब कोई सर्वज्ञ सिद्ध हो तो उसका रचित आगम सिद्ध हो और जब सर्वज्ञ रचित आगम सिद्ध हो तब सर्वज्ञ सिद्ध हो । साधारण पुरुषके द्वारा रचे गये आगमसे सर्वज्ञकी सिद्धि हो नहीं सकती, क्योंकि ऐसा आगम सच्चा नहीं माना जा सकता। अत: आगम प्रमाणसे भी सर्वज्ञकी सिद्धि सम्भव नहीं। उपमान प्रमाण भी सर्वज्ञका साधक नहीं है। क्योंकि यदि हम वर्तमानमें सर्वज्ञके समान किसो पुरुषको देखें तो उसको उपमासे सर्वज्ञको जान सकते हैं, किन्तु जगत् में सर्वज्ञके समान भी कोई नहीं है। इसी तरह अर्थापत्ति प्रमाण भी सर्वज्ञका साधक नहीं है, क्योंकि संसार में ऐसी कोई भी वस्तु दृष्टिगोचर नहीं होती जो सर्वज्ञके बिना न हो सकती हो। शायद कहा जाये कि धर्मका उपदेश बिना सर्वज्ञके नहीं हो सकता, अतः कोई सर्वज्ञ अवश्य होना चाहिए। किन्तु ऐसा कहना भी ठीक नहीं है। क्योंकि धर्मका उपदेश तो बिना सर्वज्ञके भी सम्भव है । बुद्ध, अर्हत् आदिने जो धर्मका उपदेश दिया वह केवल अज्ञानवश दिया; क्योंकि वे लोग वेदज्ञ नहीं थे। मनु आदिने जो उपदेश दिया वह तो वेदमूलक ही था। अतः धर्मके उपदेशको देखकर सर्वज्ञका अस्तित्व नहीं माना जा सकता। ये पांच प्रमाण ही ऐसे हैं जो किसी वस्तुकी सत्ताको सिद्ध कर सकते हैं। इनके सिवा अन्य कोई प्रमाण सर्वज्ञका साधक नहीं है । अतः यही मानना पड़ता है कि कोई सर्वज्ञ नहीं है ।
शायद कहा जाये कि आजकलके हमलोगोंके प्रत्यक्ष आदि प्रमाण सर्वज्ञको सिद्ध करनेवाले भले ही न हों, किन्तु देशान्तर और कालान्तरके लोगोंके प्रत्यक्षादि प्रमाण ऐसे हो सकते हैं, जिनसे सर्वज्ञको सिद्धि होती हो । ऐसा कहना भी युक्त नहीं है; क्योंकि वर्तमानमें जिस तरह के प्रत्यक्ष आदि प्रमाणोंसे जिस तहके अर्थको जाना जाता है, कालान्तर और देशान्तर में रहनेवाले लोगों के प्रमाण भी इसी तरहके थे और उनसे इसी तरहके पदार्थोंको जाना जाता था। क्योंकि वर्तमानमें जिस तरह के प्रत्यक्ष आदि प्रमाण पाये जाते हैं, उनसे विलक्षण प्रत्यक्षादि प्रमाणोंका अभाव है। अत: कोई भी प्रत्यक्ष आदि प्रमाण इन्द्रिय आदिकी सहायताके बिना नहीं हो सकता।
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