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प्रमाणके भेद
भेद हैं। जो पदार्थ जिस रूपसे स्थित है उसका उसी रूपसे स्पष्ट चिन्तन करनेवाले मनको ऋजुमन कहते हैं । जो पदार्थ जिस रूपसे स्थित है उसका उसी रूपसे स्पष्ट कथन करनेवाले वचनको ऋजुवचन कहते हैं तथा जो पदार्थ जिस रूपसे स्थित है उसे अभिनयके द्वारा उसी रूपसे बतलानेवाले कायको ऋजुकाय कहते हैं । इस प्रकार जो सरल मनके द्वारा विचारे गये, सरल वचनके द्वारा कहे गये और सरल कायके द्वारा अभिनय करके दिखलाये गये मनोगत अर्थको जानता है वह ऋजुमतिमनःपर्ययज्ञान है। आशय यह है कि कोई मनुष्य मनके द्वारा स्पष्ट रूपसे किसी अर्थका विचार करता है, स्पष्ट रूपसे उसका कथन करता है और उसके लिए शारीरिक क्रिया भी करता है। किन्तु कालान्तरमें उस विचारे गये, कहे गये और किये गये अर्थको भूल जाता है। इस प्रकारके अर्थको ऋजुमति मनःपर्ययज्ञान जान लेता है कि तुमने अमुक अर्थका इस रूपसे विचार किया था, इस रूपसे कहा था और इस रूपसे उसे किया था।
इस ऋजुमति मनःपर्य यकी उत्पत्तिमें इन्द्रिय और मनकी अपेक्षा रहती है । क्योंकि ऋजुमति मनःपर्ययज्ञानी पहले ईहा मतिज्ञानके द्वारा दूसरेके अभिप्रायको जानकर फिर मनःपर्ययज्ञानके द्वारा दूसरेके मनमें स्थित चिन्ता, जीवन-मरण, सुख-दुःख, लाभ-हानि वगैरहको जानता है। सारांश यह है कि ऋजुमति मन:पर्ययज्ञान वर्तमान जीवोंके वर्तमान मनसे सम्बन्ध रखनेवाले त्रिकालवर्ती पदार्थोंको जानता है अतीत मन और आगामी मनसे सम्बन्ध रखनेवाले पदार्थों को नहीं जानता। कालको अपेक्षा यह ज्ञान कमसे कम दो या तीन भवोंको जानता है । तथा अधिकसे अधिक वर्तमान भवको लेकर आठ भवोंको और वर्तमान भवके बिना सात भवोंको जानता है। क्षेत्रको अपेक्षा अधिकसे अधिक योजन पृथक्त्व और कमसे कम गव्यूति पृथक्त्व प्रमाण क्षेत्र में स्थित विषयको जानता है । गव्यति दो हजार धनुषका होता है । तथा यहाँ पृथक्त्वसे आठ लेना चाहिए। वैसे तीनसे लेकर नौ तककी संख्याको पृथक्त्व कहते हैं। अतः जघन्य ऋजु मति ज्ञान आठ गव्यतिके धन प्रमाण क्षेत्रमें स्थित जीवोंके मनोगत विषयोंको जानता है। और उत्कृष्ट ऋजुमति ज्ञान आठ योजनके घनप्रमाण क्षेत्रमें स्थित जीवोंके मनोगत विषयोंको जानता है।
विपुलमति मनःपर्ययज्ञान ऋजु और अनृजु मन, वचन और कायके भेदसे छह प्रकारका है। इनमें से ऋजु मन, वचन और कायका अर्थ ऊपर कहा है। तथा जो मन, वचन और कायका व्यापार सरल रूप न होकर संशय, विपर्यय और अनध्यवसाय रूप होता है उसे अनृजु मन, वचन और काय कहते हैं।
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