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प्रमाणके भेद
उत्कृष्ट देशावधिके पश्चात परमावधिज्ञान प्रारम्भ होता है। उत्कृष्ट देशावधिसे ऊपर और सर्वाधिके नीचे अवधिज्ञानके जितने विकल्प हैं वे सब परमावधिके भेद हैं। अवधिज्ञानका सबसे उत्कृष्ट भेद सर्वावधि कहलाता है। यह सर्वावधि परमाणु तकको जानता है। उत्कृष्ट देशावधि संयमी मनुष्यके ही होता है और परमावधि तथा सर्वावधि उसी मुनिके होते हैं जो उसी भवसे मोक्ष जाता है। जघन्य देशावधि मनुष्यों और तिर्यंचोंके होता है। तथा देशावधिके मध्यम भेट चारों गतियोंके जोवोंके यथायोग्य होते हैं ।
• अनुगामी, अननुगामी, वर्धमान, होयमान, अवस्थित, अनवस्थित, प्रतिपाती, अप्रतिपाती, एकक्षेत्र, अनेकक्षेत्रके भेदसे अवधिज्ञानके और भी भेद हैं। जो अवधिज्ञान उत्पन्न होकर जीवके साथ जाता है वह अनुगामी है। इसके तीन भेद है-क्षेत्रानुगामी, भवानुगामी, और क्षेत्रभवानुगामो । जो अवधि अपने स्वामी जीवके एक क्षेत्रसे दूसरे क्षेत्र में जानेपर उसके साथ जाता है वह क्षेत्रानुगामी है। जो अपने स्वामी जीवके साथ एक भवसे दूसरे भवमें जाता है वह भवानुगामी है । और जो क्षेत्रान्तर तथा भवान्तर में भी साथ नहीं छोड़ता वह क्षेत्रभवानुगामी है । जो अवधिज्ञान जीवके साथ नहीं जाता वह अननुगामी है । इसके भी क्षेत्राननुगामी भवाननुगामी, और क्षेत्रभवाननुगामी इस तरह तीन भेद हैं। जो अवधिज्ञान उत्पन्न होनेवे समयसे लेकर केवलज्ञान उत्पन्न होने तक बढ़ता जाता है वह वर्धमान है। जो अबधिज्ञान उत्पन्न होकर घटता चला जाता है वह हीयमान है। जो अवधिज्ञान उत्पन्न होकर जन्मपर्यन्त अथवा केवलज्ञान होनेतक ज्योंका त्यों बना रहता है वह अवस्थित है। जो अवधिज्ञान उत्पन्न होकर कभी घटता और कभी बढ़ता है वह अनवस्थित है। जो अवधिज्ञान उत्पन्न होकर समूल नष्ट हो जाता है वह प्रतिपाती है। जो अवधिज्ञान उत्पन्न होकर केवलज्ञानके होनेपर ही नष्ट होता है वह अप्रतिपाती है। जिसको अवधिज्ञान उत्पन्न होता है उसके शरीर में नाभिसे ऊपर श्रीवत्स आदि अनेक चिह्न बन जाते हैं । इनमें से किसी के एक चिह्न और किसीके अनेक चिह्नोंसे अवधिज्ञान होता है, इन्हें एकक्षेत्र और अनेक क्षेत्र कहते हैं। देव, नारकियों और तीर्थंकरोंके अनेकक्षेत्र अवधिज्ञान होता है। इन दस भेदोंमें-से भवप्रत्यय अवधिज्ञान में अवस्थित, अनवस्थित, अनुगामी, अननुगामी और अनेक क्षेत्र ये पांच भेद होते हैं और गुणप्रत्यय अवविज्ञान में दसों भेद पाये जाते हैं। तथा देशावधिमे दसों भेद होते हैं, परमावधिमें होयमान, प्रतिपाती और एकक्षेत्रको छोड़कर शेष सात भेद होते हैं। तथा सर्वावधिमें अनुगामी, अननुगामी, अवस्थित, अप्रतिपाती और अनेकक्षेत्र ये पाँच भेद पाये
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