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प्रमाणके भेद
उत्तर-'यह शब्द है, अशब्द नहीं है' इस प्रकारका ज्ञान विशेषग्राही ही है; क्योंकि रूप आदिसे व्यावृत्त शब्दको ग्रहण करता है । यदि रूप आदिसे व्यावृत्त शब्दको ग्रहण न करता तो 'यह शब्द है' इस प्रकारका निश्चय भी न होता। अतः 'यह शब्द है, अशब्द नहीं है' यह ज्ञान विशेषग्राही होनेसे अवाय क्यों नहीं कहा जायेगा और उस अवस्थामें अवग्रहके अभावका प्रसंग उपस्थित होगा। ___ शंका-शब्द मात्रको विषय करनेवाला ज्ञान अवाय नहीं है किन्तु अवग्रह ही है; क्योंकि उसमें विशेषका ग्रहण बहुत थोड़ा है। 'यह शब्द शंखका है। इत्यादि विशेषणसे विशिष्ट जो ज्ञान होता है वही अपाय है; क्योंकि उसमें विशेष का ग्रहण अधिक है।
उत्तर-'जो थोड़े-से विशेषको ग्रहण करता है वह अपाय नहीं है' यदि ऐसा नियम बनाया जायेगा तो अपाय ज्ञानका ही लोप हो जायेगा; क्योंकि उत्तरोत्तर विशेष-विशेष अर्थको ग्रहण करनेवाले ज्ञानोंकी अपेक्षा अर्थविशेषको ग्रहण करने वाले सभी पूर्व-पूर्व ज्ञान थोड़े-थोड़े विशेषके ग्राहक ठहरेंगे। अतः सभी अर्थावग्रह कहलायेंगे । अतः उक्त कथन ठीक नहीं है । तथा 'यह शब्द है अथवा अशब्द है' इस प्रकारको ईहा हुए बिना 'यह शब्द ही है' इस प्रकारका निश्चय ज्ञान कैसे हो सकता है ? यदि आप ऐसा मानते हैं कि 'निश्चयसे पहले ईहा हुई उसके बाद 'शब्द ही है' ऐसा निश्चय ज्ञान हुआ; तो यह प्रश्न होता है कि ईहासे पहले ज्ञाता ने जिस वस्तुको ग्रहण किया वह क्या है जिसमें ईहाके होने के पश्चात् 'यह शब्द ही है' यह निश्चयज्ञान उत्पन्न होता है ? यदि वह नाम जाति आदिकी कल्पना से रहित सामान्य मात्र है तो ईहासे पहले उस सामान्य मात्रको ग्रहण करनेके लिए कुछ काल होना चाहिए जिस कालमे उसको ग्रहण किया जा सके। वह काल हमारा माना हुआ अर्थावग्रह काल तो हो नहीं सकता; अन्यथा आपको हमारा मत मानना पड़ेगा। किन्तु हमारे माने हुए अर्थावग्रहसे पहले ही कुछ काल होना चाहिए । अब उससे पहले तो व्यंजनावग्रहका ही काल है । किन्तु उस कालमें सामान्य रूप अथवा विशेष रूप किसी भी अर्थका ग्रहण सम्भव नहीं है; क्योंकि उस समय मनके बिना केवल इन्द्रियका व्यापार है। अतः यह मानना पड़ता है कि अर्थावग्रह ही सामान्य ग्रहण रूप है उसके बाद ईहा होती है । और ईहाके बाद 'यह शब्द ही है' यह अपाय नामका निश्चय ज्ञान होता है। . शंका-तुरन्तका जन्मा हुआ बालक अव्यक्त सामान्य मात्र वस्तुको ग्रहण करे इसमें कोई विवाद नहीं है क्योंकि उसके लिए सब विषय अपरिचित है। किन्तु जो विषयसे परिचित है उसको तो शब्द सुनते ही उसके विशेष धर्मोंका
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