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________________ जैन न्याय है तो यह बात नन्दिसूत्र के विरुद्ध जाती है । नन्दिसूत्र में लिखा है कि किसी पुरुषने अव्यक्त शब्द सुना। वह अर्थावग्रहके द्वारा 'शब्द'को ग्रहण करता है किन्तु वह नहीं जानता कि किसका शब्द है। आप तो अर्थावग्रहका विषय सर्वथा शब्द आदिके उल्लेखसे रहित बतलाते हैं ? उत्तर-प्रथम तो 'वह मनुष्य शब्दको ग्रहण करता है' यहाँ शब्दका उल्लेख सूत्रकारकी ओरसे हुआ है, ग्रहण करनेवालेको ओरसे नहीं । दूसरे वह मनुष्य रूप, रस आदि विशेषोंसे व्यावृत्त निश्चित शब्दको ग्रहण न करके शब्दमात्रको ग्रहण करता है, बस इतने अंशमें ही उसे शब्दका ग्रहण कहा जाता है। किन्तु शब्दबुद्धिसे वह शब्दका ग्रहण नहीं करता। क्योंकि शब्दका उल्लेख एक अन्तर्मुहूत कालमें होता है और अर्थावग्रहका काल एक समय है। अतः अर्थावग्रहमें शब्दका उल्लेख होना असम्भव ही है । शंका-यदि अर्थावग्रहमें शब्दका निश्चयात्मक ज्ञान हो तो हानि क्या है ? उत्तर-तब तो वह अर्थावग्रह न रहकर अवाय ही हो जायेगा; क्योंकि निश्चयात्मक ज्ञान अवाय रूप होता है । शंका-प्रथम समयमें ही रूप, रस आदिसे व्यावृत 'यह शब्द है' इस ज्ञानको अर्थावग्रह मानिए; क्योंकि अर्थावग्रहका विषय सामान्य रूप कहा है और यहाँ भी शब्दमात्रको विषय करता है इसलिए सामान्य रूप विषय है ही। बादमें जो यह विमर्श बुद्धि होती है कि इस शब्दमें शंखकी आवाज़के गुण हैं, सिंगेकी आवाज के धर्म नहीं हैं, यह ईहा है । अतः 'यह शब्द शंखका ही है' यह अवाय है। ऐसा मानने में क्या हानि है ? उत्तर-यदि 'यह शब्द है' इस निश्चय ज्ञानको आप अर्थावग्रह मानते हैं, और 'यह शब्द शंखका ही है' इस ज्ञानको अवाय कहते हैं तो अवग्रहका लोप ही हो जायेगा क्योंकि आपने प्रारम्भमें ही अवाय ज्ञान स्वीकार कर लिया। शंका-'यह शब्द है' यह ज्ञान अवाय कैसे है ? उत्तर-----क्योंकि विशेषको ग्रहण करता है । आप भी तो विशेषज्ञानको अवाय मानते हैं। शंका-'यह शब्द शंखका ही है' उत्तरकालमें होनेवाला यह ज्ञान ही विशेषको ग्रहण करता है। यह शब्द है' इस ज्ञान में तो शब्द सामान्य का ही प्रतिभास होता है, विशेषका प्रतिभास नहीं होता। तब इसे अवाय कैसे कहा जा सकता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002089
Book TitleJain Nyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1966
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Nyay, & Epistemology
File Size16 MB
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