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जैन न्याय
उत्पन्न हुआ ज्ञान असत् केशादिको जानता है तो निर्मल चक्षु और मनसे उत्पन्न हुआ ज्ञान सद् वस्तुको जानता है ऐसा क्यों नहीं मान लेते। ऐसी स्थितिमें ज्ञान अर्थका कार्य कैसे हो सकता है। क्योंकि ज्ञानको अर्थका कार्य मानने में केशोण्डुक ज्ञानसे व्यभिचार आता है और संशयज्ञानसे भो व्यभिचार आता है । ___ संशयज्ञान अर्थके होनेपर ही होता है, ऐसी बात नहीं है यदि ऐसा हो तो वह अभ्रान्त कहा जायेगा। तथा संशयज्ञानके विषयभूत स्थाणु और पुरुष रूप दो अर्थ एक जगह रह भी नहीं सकते। यदि रह सकते होते तो संशय हो क्यों होता?
नैयायिक-सामान्यका प्रत्यक्ष होनेसे, विशेषका प्रत्यक्ष न होनेसे तथा दोनोंके विशेष धर्मोका स्मरण होनेसे संशयज्ञान होता है। और विपर्ययज्ञान सामने स्थित सीपसे विपरीत चांदोके विशेष धर्मोका स्मरण होनेसे होता है। अतः संशय और विपर्ययज्ञान अर्थसे ही उत्पन्न होते हैं ।
__उक्त कथन ठीक नहीं है। इन दोनों ज्ञानोंका हेतु सामान्य है, विशेष है अथवा दोनों हैं ? सामान्य तो हेतु हो नहीं सकता, क्योंकि सामान्यमें तो संशय आदिका अभाव है, सामान्यका तो प्रत्यक्ष हो जाता है और जिसका प्रत्यक्ष हो जाता है उसमें संशयादि कैसे हो सकते हैं ? तथा संशय आदि ज्ञानोंका विषय विशेष है तब उसका जनक सामान्य कैसे हो सकता है। अन्यको विषय करनेवाले ज्ञानको उत्पत्ति अन्यसे नहीं होती, अन्यथा रूपज्ञानकी रससे उत्पत्तिका प्रसंग आता है। और जैसे सामान्यसे उत्पन्न होनेवाला ज्ञान विशेषको जानता है वैसे ही इन्द्रिय और मनसे उत्पन्न होनेवाला ज्ञान विद्यमान सामान्य आदिको भी जान लेता है तब अर्थको ज्ञानका कारण मानना व्यर्थ ही है।
यदि संशयज्ञान सामान्य अर्थसे उत्पन्न होता है तो आपने जो संशयको अर्थ और अनर्थजन्य माना है उससे विरोध आता है क्योंकि स्थाणु और पुरुषमें-से कोई एक जो सम्मुख विद्यमान होता है वह तो अर्थ है और जो विद्यमान नहीं होता वह अनर्थ है । उन दोनोंसे संशयज्ञानकी उत्पत्ति आपने मानी है । तथा यदि संशयादि ज्ञान सामान्य अर्थसे उत्पन्न होते हैं तो कामल रोगीको केशोण्डुकका ज्ञान उत्पन्न नहीं हो सकता; क्योंकि आकाशमें केशोण्डुक वगैरहके समान धर्मवाली कोई वस्तु वर्तमान नहीं है जिसे देखकर केशोण्डुकका ज्ञान हो। अतः संशयादि ज्ञानोंका हेतु सामान्य नहीं है।
विशेष भी उनका हेतु नहीं है क्योंकि सामने विशेषका अभाव है। यदि सामने स्थाणु पुरुषरूप विशेष अर्थ वर्तमान होता तो उसका ज्ञान अभ्रान्त
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