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प्रमाणके भेद
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अभिमानसे दो प्रकारका सर्ग प्रवर्तित होता है। एक-ग्यारह इन्द्रियों ( पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, स्पर्शनादि पांच कर्मेन्द्रियाँ, मन ) और एक-पाँच तन्मात्रा ( स्पर्श, रस, गन्ध, रूप और शब्द )। इस तरह सांख्य इन्द्रियोंको आहंकारिक मानता है। किन्तु उसका ऐसा मानने में प्रमाणका अभाव है और प्रमाणसे बाधा भी आती है। उसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है
इन्द्रियां आरंकारिक नहीं हैं क्योंकि वे अचेतन होनेके साथ करण भी हैं जैसे बिसोला । अथवा इन्द्रियां आहंकारिक नहीं हैं, क्योंकि वे इन्द्रियाँ है जैसे कर्मेन्द्रियाँ ( वाणी, हाथ, पैर, गुदा और मूत्रेन्द्रिय )। इसमें मनसे व्यभिचार नहीं आता क्योंकि द्रव्य मनको आहंकारिक नहीं माना है। भावेन्द्रिय और भाव मनसे भी व्यभिचार नहीं आता, क्योंकि हेतुमें 'अचेतन होने के साथ' यह विशेषण दिया है भावेन्द्रियाँ तो चेतन हैं। सुखादिसे भी व्यभिचार नहीं आता, क्योंकि सुखादि करण नहीं हैं। ___ इन्द्रियाँ आहंकारिक नहीं हैं क्योंकि वे प्रतिनियत ज्ञानके व्यपदेशमें निमित्त हैं, जैसे रूपादि । अथवा इन्द्रियां आहंकारिक नहीं है क्योंकि वे प्रतिनियत विषयकी प्रकाशक हैं, जैसे दीपक । जैसे रूपज्ञान, रसज्ञान आदि प्रतिनियत ज्ञानके व्यपदेशमें हेतु होनेसे रूपादि आहंकारिक नहीं हैं वैसे ही चक्षु ज्ञान रसन ज्ञान आदि प्रतिनियत ज्ञान व्यपदेशमें हेतु होनेसे चक्षु आदि इन्द्रियाँ भी आहंकारिक नहीं है।
इन्द्रियाँ आहंकारिक नहीं हैं क्योंकि पुद्गलोंके द्वारा उनका अनुग्रह और उपधात देखा जाता है, जैसे दर्पण वगैरह भस्मसे स्वच्छ हो जाते हैं और पत्थरसे टट जाते हैं अतः वे आहंकारिक नहीं हैं किन्तु पौद्गलिक हैं, वैसे ही पौदगलिक अंजन वगैरहसे चक्षु आदि इन्द्रियोंका अनुग्रह और उपघात देखा जाता है अतः वे भी पौदगलिक हैं। मन भो आहंकारिक नहीं है क्योंकि उसका विषय अनियत है. जैसे आत्मा । अत: द्रव्येन्द्रियोंकी उत्पत्ति प्रतिनियत इन्द्रियके योग्य पुद्गलोंसे माननी चाहिए । अतः इन्द्रियाँ पौद्गलिक हैं । अर्थ और प्रकाशके ज्ञान कारणत्यकी समीक्षा ___ इस प्रकार इन्द्रिय और मनको ज्ञानकी उत्पत्ति में कारण बतलाया है। किन्तु कुछ दार्शनिक अर्थ और प्रकाशको भी ज्ञानका कारण मानते हैं । उनको उत्तर देते हुए आचार्य माणिक्यनन्दिने लिखा है
'नार्थालोको कारणं परिच्छेद्यत्वात्तमोवत् ॥६॥ तदन्वयव्यतिरेकानुविधाना१. प्रमेय कमल मार्तण्ड, पृ० २३१ आदि ।
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