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________________ ११६ जैन न्याय सामग्रीसे उत्पन्न होता है। न तो वह प्रत्यक्ष रूप है, क्योंकि सविकल्पक और अस्पष्ट होता है और न अनुमान रूप है, क्योंकि उसकी उत्पत्ति त्रैरूप्य लिंगसे नहीं होती । जैसे, 'जहाँ धूम होता है वहाँ अवश्य आग होती है' ऐसा धूम अग्निका अविनाभाव सम्बन्ध होनेसे ज्ञाता धूमसे अग्निको जान लेता है । वैसे शब्दका अर्थके साथ अन्वय नहीं है कि जहां शब्द हो वहाँ अर्थ भी अवश्य हो। उदाहरणके लिए जहां पिण्डखजूर शब्द सुना जाता है वहाँ पिण्डखजूर नामक अर्थ भी हो ऐसा कोई नियम नहीं है और न शब्दकालमें अर्थ अवश्य रहता ही है। रावण, शंखचक्रवर्ती आदि शब्द तो वर्तमान हैं किन्तु रावण तो अतीत हो चुका और शंखचक्रवर्ती आगे होगा, अतः शब्दका अर्थके साथ अन्वयव्यतिरेक नहीं है। इसलिए अनुमान प्रमाणसे शाब्द प्रमाण भिन्न ही है । नैयायिक और मीमांसक सम्मत प्रमाण भेद नैयायिक और मीमांसक उपमान नामका एक प्रमाण मानते हैं। दोनोंकी शैलोमें अन्तर हैं। इसका निरूपण तथा जैनोंके सादृश्यप्रत्यभिज्ञानमें उनका अन्तर्भाव आगे परोक्ष परिच्छेदमें बतलाया जायेगा। - मीमांसक प्रत्यक्ष, अनुमान, शाब्द (आगम) और उपमानके अतिरिक्त अर्थापत्ति और अभाव नामक प्रमाण भी मानते हैं। उनका विवेचन और अन्तर्भाव आगे किया जाता है। अर्थापत्ति नामक प्रमाणका विवेचन तथा अन्तर्भाव मीमांसकका मत है कि अर्थापत्ति नामका एक स्वतन्त्र प्रमाण है। देखा या सुना गया जो अर्थ जिसके बिना नहीं हो सकता उस अदृष्ट अर्थकी कल्पनाको अर्थापत्ति कहते हैं। शाबर भाष्य (१।१।५) के इस कथनको स्पष्ट करते हुए कुमारिलने भी लिखा है "प्रमाणषटकविज्ञातो यत्रार्थोऽनन्यथा भवन् । अदृष्टं कल्पयेदन्यं सार्थापत्ति रुदाहृता ॥" [ मो० श्लो० अर्था० परि० श्लो० १ ] अर्थात् प्रत्यक्ष आदि छह प्रमाणोंके द्वारा प्रसिद्ध जो अर्थ जिसके बिना नहीं हो सकता, उस अर्थकी कल्पना अर्थापत्ति है। अर्थापत्तिके अनेक प्रकार हैं। प्रत्यक्षपूर्वक अर्थापत्ति-जैसे, प्रत्यक्षसे अग्निका दाह रूप कार्य देखकर उसमें दहनशक्तिकी कल्पना अर्थापत्तिसे की जातो है; क्योंकि अतीन्द्रिय होनेसे शक्तिको प्रत्यक्षसे नहीं जान सकते । और न अनुमानसे जान सकते हैं क्योंकि अनुमान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002089
Book TitleJain Nyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1966
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Nyay, & Epistemology
File Size16 MB
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