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प्रमाणके भेद
प्रमाणत्व और अप्रमाणत्वकी व्यवस्थासे, दूसरेकी बुद्धि को जाननेसे और परलोक आदिका निषेध करनेसे प्रत्यक्ष भिन्न प्रमाणान्तरका अस्तित्व सिद्ध होता है । अतः चार्वाकका प्रत्यक्ष प्रमाणकवाद ठीक नहीं है। . बौद्ध-सम्मत दो भेद
बौद्ध दो ही प्रमाण मानते हैं-प्रत्यक्ष और अनुमान । उनका कहना है"प्रमेयद्वैविध्यात् प्रमाणद्वैविध्यम"-प्रमेय दो प्रकारका होनेसे प्रमाण भी दो प्रकारका है। जैनोंका कहना है कि सामान्य विशेषात्मक अर्थ ही प्रमेय है और वही प्रमाणमात्रका विषय है। यदि अनुमानका विषय केवल सामान्य मात्र माना जायेगा तो उससे स्वलक्षण रूप अर्थों में प्रवृत्ति नहीं हो सकेगी; क्योंकि अन्यविषयक ज्ञान अन्यमें प्रवृत्ति नहीं करा सकता। यदि ऐसा होगा तो घट-विषयक ज्ञान पटमें प्रवृत्ति करा देगा। यदि कहा जायेगा कि लिंगके द्वारा अनुमित सामान्यसे विशेषका बोध होता है और उससे उसमें प्रवृत्ति होती है तो लिंगसे ही विशेषका बोध क्यों नहीं मान लेते। शायद कहा जाये कि लिंगके अविनाभाव सम्बन्धको प्रतिपत्ति सामान्यके साथ होती है, विशेषके साथ नहीं, जैसे धूमका अविनाभाव सम्बन्ध अग्नि सामान्यके साथ है तो यह बात तो सामान्यमें भी समान है-सामान्यके प्रतिबन्धको प्रतिपत्ति विशेषोंके साथ नहीं है तब सामान्यसे विशेषोंका बोध कैसे हो सकता है। यदि प्रतिबन्धका बोध न होनेपर भी सामान्यसे विशेषोंका बोध हो सकता है तो विशेषोंके साथ लिंगका अविनाभाव सम्बन्ध ज्ञात होने पर भी लिंगसे विशेषका बोध क्यों नहीं मान लेते।
बौद्धका कहना है कि प्रमेय भेद न भी रहे, किन्तु फिर भी आगम आदि प्रमाण अनुमानसे भिन्न नहीं हैं क्योंकि शब्द वगैरहसे सम्बद्ध परोक्ष अर्थका बोध होता है या असम्बद्धका? असम्बद्ध अर्थका बोध तो हो नहीं सकता, क्योंकि यदि ऐसा हो तो 'गो' शब्दसे भी अश्वका बोध हो जायेगा। यदि सम्बद्ध अर्थका हो बोध शब्दसे होता है तो वह शब्द लिंग रूप ही हुआ और उससे उत्पन्न हुआ ज्ञान अनुमान ही हुआ।
जैनोंका कहना है कि इस रीतिसे तो प्रत्यक्ष भी अनुमान ही ठहरता है; क्योंकि प्रत्यक्ष भी अपने विषयसे सम्बद्ध होकर ही उसका ज्ञान कराता है। यदि ऐसा न हो तो सभी प्रमाता सभी अर्थों का प्रत्यक्ष कर सकेंगे। यदि कहा जायेगा कि यद्यपि प्रत्यक्ष और अनुमान दोनों ही अपने-अपने विषयोंसे सम्बद्ध हैं तथापि दोनों भिन्न सामग्रोसे उत्पन्न होनेके कारण भिन्न हैं, तो इसी प्रकार आगम आदि प्रमाणोंको भी अनुमानसे भिन्न क्यों नहीं मानते, क्योंकि आगम प्रमाण शब्द रूप
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