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पमाणके भेद जैनेतर दर्शनोंमें मीमांसक प्रमाणके छह भेद मानता है-(१) प्रत्यक्ष, (२) अनुमान, (३) शाब्द ( आगम), (४) उपमान, (५) अर्थापत्ति और (६) अभाव । नैयायिक चार भेद मानता है-(१) प्रत्यक्ष, (२) अनुमान, (३) शाब्द और (४) उपमान । सांख्य तीन भेद मानता है-(१) प्रत्यक्ष, (२) अनुमान और (३) शाब्द । वैशेषिक और बौद्ध दो भेद मानते हैं--(१) प्रत्यक्ष और (२) अनुमान । तथा चार्वाक एक प्रत्यक्ष प्रमाण ही मानता है।
जैन सम्मत दो भेद-जैन दर्शनमें प्रमाणके दो भेद किये गये हैं--एक प्रत्यक्ष और दूसरा परोक्ष । पहले बताया है कि प्रमाणको चर्चा दार्शनिक युगकी देन है। इसीसे कुन्दकुन्दके प्रवचनसार में ज्ञान और ज्ञेयकी चर्चा होनेपर भी प्रमाण और प्रमेय शब्द नहीं मिलते । अतः कुन्दकुन्दने ज्ञानके ही दो भेद किये हैंप्रत्यक्ष और परोक्ष । किन्तु कुन्दकुन्दकी ही परम्परामें प्रवचनसारके पश्चात् रचे गये तत्त्वार्थसूत्र नामक सूत्र ग्रन्थमें, जो सम्भवतया इतर दर्शनोंके सूत्रग्रन्थोंसे प्रभावित होकर उस कमीकी पूतिके उद्देश्यसे रचा गया था, ज्ञान को ही प्रमाणबतलाकर, उसके दो भेद प्रत्यक्ष और परोक्ष किये हैं । यहीसे जैन दर्शन में प्रमाणको चर्चाका सूत्रपात हुआ है ।
दार्शनिक युगके प्रभावसे पहले जैन सिद्धान्त में ज्ञानके पाँच भेद पाये जाते है-मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय और केवल । यही मौलिक जैन परम्परा है; क्योंकि प्रथम तो ये भेद जैन परम्पराके सिवा अन्य किसी भी परम्परामें नहीं हैं, दूसरे जैन कर्म सिद्धान्तमें ज्ञानको ढाँकनेवाले ज्ञानावरण कर्मके भी पाँच भेद इन्हीं भेदोंको आधार मानकर किये गये हैं। यथा-मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण, मनःपर्ययज्ञानावरण और केवलज्ञानावरण । तत्त्वार्थसूत्रमें भी ज्ञानकी चर्चाको अवतरित करते हुए इन्हीं पाँच भेदोका निर्देश करके पहले इन्हें प्रमाण बतलाया है। फिर प्रमाणके प्रत्यक्ष और परोक्ष भेदोंमें उन पांचों ज्ञानोंका विभाजन करते हुए मति और श्रुतको परोक्ष प्रमाण तथा शेष तीन ज्ञानोंको प्रत्यक्ष प्रमाण बतलाया है। यथा
"मतिश्रुतावधिमनःपर्ययकेवलानि ज्ञानम् ।९। तत्प्रमाणे ।१०।
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