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प्रमाण
यदि ज्ञानको साकार माना जाता है तो ज्ञानकी साकारतासे क्या आशय है । -ज्ञानका स्वसंविद् रूप होना, अथवा उसका वैशद्य आदि स्वभाव, अथवा 'यह नील है' इस प्रकार अर्थाकारका उल्लेख, अथवा अर्थके आकारको धारण करना । प्रथम तीन विकल्पोंमें तो कोई आपत्ति हमें नहीं है; क्योंकि ज्ञान में ये तीनों बातें होती हैं, इनमें से एकका भी अभाव होनेपर ज्ञान ज्ञान ही नहीं रह सकता । हाँ, ज्ञानका अर्थके आकारको धारण करना असंगत है; क्योंकि नील आदि आकार ज्ञान में संक्रान्त नहीं होता, क्योंकि वह जड़का ही धर्म है । जो काही धर्म होता है वह ज्ञान में संक्रान्त नहीं होता, जैसे जड़ता । उसी तरह नील आदि आकार भी जड़का हो धर्म है । शायद कहा जाये कि सत्त्वसे व्यभिचार आयेगा । किन्तु ऐसा कहना ठीक नहीं है, सत्त्व जड़का ही धर्म नहीं है अजड़ ( चेतन ) सुखादिमें भी सत्त्व धर्म रहता है ।
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इसी तरह यदि ज्ञान साकार है तो अर्थके साथ ज्ञानका पूरी तरहसे सारूप्य है, अथवा एकदेशसे ? पूरी तरह से सारूप्य माननेपर चूँकि अर्थ जड़ है, अतः ज्ञान भी जड़ ही हो जायेगा । और फिर ज्ञान प्रमाणरूप न रहकर प्रमेय रूप हो जायेगा; क्योंकि अर्थ प्रमेय होता है, प्रमाण नहीं होता । किन्तु ऐसा होना युक्त नहीं है; क्योंकि प्रमाणका अन्तर्मुख रूपसे और अर्थका बाह्य रूपसे अलगअलग प्रतिभास होता है । इस दोषके भयसे यदि अर्थके साथ ज्ञानका एकदेशसे सारूप्य मानते हैं तो अजड़ाकार ज्ञानके द्वारा अर्थको जड़ताकी प्रतीति नहीं हो सकेगी क्योंकि ज्ञान जड़ाकार नहीं है और जो जिसके आकार नहीं होता वह उसको ग्रहण नहीं कर सकता । तथा जड़ताको प्रतीति न होनेसे 'अर्थ जड़ है' यह बोध कैसे हो सकेगा ? और जड़ताकी प्रतीति न होनेपर नीलताकी भी प्रतीति नहीं हो सकेगो । अन्यथा नीलताकी प्रतीति होने और जड़ताकी प्रतीति न होनेसे नीलता और जड़ता में भेद हो जायेगा ।
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तथा, यदि बुद्ध दूसरोंके रागादिको जानते समय तदाकार हो जाते हैं तो दूसरे मनुष्यों के समस्त कल्पनासमूहका अनुकरण करनेसे वह वीतराग और कल्पनाजालसे रहित कैसे हो सकेंगे ? शायद कहा जाये कि परकीय रागादिके आकारका अनुकरण करनेपर भी 'यह मेरे रागादि हैं' यह बुद्धि नहीं होती, अतः कोई दोष नहीं है ? तो प्रश्न होता है कि 'वे रागादि दूसरोंके कैसे हैं' शायद कहा जाये कि दूसरोंको उस प्रकारकी बुद्धि होती है कि वे रागादि हमारे हैं ? तो यदि बुद्ध दूसरोंकी इस बुद्धिके आकारका अनुकरण करते हैं तो वही दोष पुनः आता है | अतः इस दोषके भयसे यदि यह मानते हैं कि ज्ञान अतदाकार होकर
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