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________________ ३० : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन मूलाचार का कर्तृत्व विषयक विवाद : प्राचीनकाल में साहित्य का सृजन लोकोपकार की भावना से प्रेरित होकर किया जाता था, अतः आत्मश्लाघा भय से कुछ ग्रन्थकर्ता अपना पूरा परिचय. देना उचित नहीं मानते थे । यही कारण है जैन साहित्य ही क्या अन्य भारतीय साहित्य जगत् में आज भी अनेक ऐसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हैं जिनका कर्तृत्वविषयक मतभेद आज भी विद्यमान है । जैन साहित्य जगत् में भी ऐसे ग्रन्थों की कमी नहीं है । मूलाचार इसका एक महान् उदाहरण भी है । इसके कर्तृत्व के विषय में विविध विद्वानों के मध्य अनेक मतभेद हैं । कुछ विद्वान् मूलाचार को वट्टकेराचार्यकृत मानते हैं तो कुछ कुन्दकुन्दाचार्यकृत और कुछ तो इसे संग्रहग्रन्थ ही मानते रहे । इस विषय में विभिन्न प्राचीन आचार्यों और आधुनिक विद्वानों के विभिन्न मतों को सुविधा की दृष्टि से तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है । १ – कुन्दकुन्दाचार्यकृत मानने वाले, २ – संग्रहग्रन्थ मानने वाले, ३ वट्टकेराचार्यकृत मानने वाले । कुन्दकुन्दाचार्यकृत मानने वाले आचार्य और विद्वान् : मूलाचार की कुछ टीकाओं पर आचार्य कुन्दकुन्द द्वारा रचित होने का उल्लेख किया गया है । तथा कुन्दकुन्दाचार्य के ग्रन्थों की बहुत गाथायें मूलाचार में पाये जाने के कारण कुछ आचार्य और विद्वान् इसे कुन्दकुन्दाचार्यकृत ही मानने लगे । मूलाचार की आचारवृत्ति समाप्ति की घोषणा के बाद भी एक पुष्पिका' द्वारा इसे कुन्दकुन्दाचार्य प्रणीत होने की सूचना के कारण भ्रमवश कुछ विद्वानों का झुकाव भी आचार्य कुन्दकुन्दकृत होने की ओर हो गया । मूलाचार सद्वृत्ति नामक कर्नाटक टीका में मेघचन्द्राचार्य तथा मुनिजन चिन्तामणि नामक एक अन्य कर्नाटक टीका में इसे आचार्य कुन्दकुन्द की रचना होने का उल्लेख किया गया है । २ मूडबिद्री स्थित पं० लोकनाथ शास्त्री सरस्वती भण्डार (जैनमठ) की मूलाचार की ताड़पत्रीय प्रतिसंख्या ५६ के अन्त में आचार्य वसुनन्दी की टीका की समाप्ति में एक प्रशस्ति पद्य किया गया है जिसमें आचार्य कुन्दकुन्द रचित होने १. इति मूलाचारविवृत्तो द्वादशोऽध्यायः । कुन्दकुन्दाचार्यप्रणीतमूलाचाराख्यविवृतिः । कृतिरियं वसुनन्दिनः श्रीश्रमणस्य ।। मूलाचार भाग २, पृ० ३२४ २. कुन्दकुन्द मूलाचार ( हिन्दी अनुवाद) की प्रस्तावना, पृ० १४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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