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२८ : मूलाचार का समोक्षात्मक अध्ययन जीवसमास पुढवी य सक्करा वालुया य उवले सिला य सोणूसे ।
अयतंबतउयसीसय रुप्पसुवण्णे यः वइरे य ॥२७॥ मूलाचार कंदा मूला छल्ली खंधं पत्तं पवाल पुप्फफलं ।
गुच्छा गुम्मा वल्ली तणाणि तह पव्व काया य ॥५।१७।। जीवसमास कंदा मूला छल्ली कट्ठा पत्ता पवाल पुप्फफला ।
गुच्छा गुम्मा वल्ली तणाणि तह पव्वया चेव ।।३५॥ मूलाचार एया य कोडिकोडी णवणवदीकोडिसदसहस्साई ।
पण्णासं च सहस्सा संवग्गीणं कुलाण कोडीओ ।।५।२८॥ जीवसमास एगा कोडाकोडी सत्ताणउई भवे सयसहस्सा ।
पन्नासं च सहस्सा कुलकोडीओ मुणयन्वा ।।४४।। उपर्युक्त गाथाओं में से मूलाचार की ५।१७ वी गाथा में खंधं पाठ के स्थान पर जीवसमास में 'कट्टा' पाठ है । मूलाचार की २४ वीं गाथा में 'बावीस' की जगह जीवसमास में 'बारस' पाठ है । मूलाचार की ५।२७ वी गाथा में मनुष्यों के चौदह लाख करोड़ भेद की जगह जीवसमास गाथा ४३ में मनुष्यों के कुल भेद १२ लाख करोड़ निर्दिष्ट हैं । इसी से उनकी समस्त संख्या में भेद है। इसी प्रकार मूलाचार की २८ वी गाथा में सभी कुलों की संख्या एक कोड़ाकोड़ी निन्यानवे लाख पचास हजार की जगह जीवसमास गाथा संख्या ४४ में एक कोड़ाकोड़ी सन्तानवे लाख पचास हजार की संख्या का उल्लेख है । इस प्रकार मूलाचार की उपर्युक्त अठारह गाथाओं में पृथ्वी, अप, तेज, वायु आदि का जो वर्णन किया है वह जीवसमास में भी प्रायः उसी क्रम से उपलब्ध होता है । दिगम्बर परम्परा के कुछ ग्रन्थों में भी इसी प्रकार का वर्णन मिलता है किन्तु जीवसमास की ३०, ३६ एवं ६५ आदि गाथाओं में पृथ्वीकाय आदि का जो विषय विवेचन मिलता है वह उपलब्ध श्वेताम्बर परम्परा के आगम ग्रन्थों में दिखाई नहीं पड़ता।' मूलाचार और आतुरप्रत्याख्यान । ___ श्वेताम्बर परम्परा के प्रकीर्णक ग्रन्थों में वीरभद्र महामुनि प्रणीत (संकलित) आउरपच्चक्खाण (आतुरप्रत्याख्यान) पयन्ना में जीवन के अन्तिम भाग को सुधारने तथा आगे सद्गति प्राप्त करने की विधि का सुन्दर प्रतिपादन है । इसमें ७० गाथायें हैं । दस गाथाओं के बाद का कुछ भाग गद्य में है । आतुरप्रत्याख्यान की ७० गाथाओं में से ६० गाथायें मूलाचार के बृहत्प्रत्याख्यानसंस्तरस्तव नामक द्वितीय अधिकार से बिलकुल समान या अल्पाधिक अन्तर के साथ मिलती हैं। जैसे१. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग-४ पृष्ठ १६५. २. देखिए, आराधनासार में संकलित आउरपच्चक्खाण पइण्णा ।
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