________________
पिण्डनियुक्ति
मूलाचार
पिण्डनियुक्ति
प्रास्ताविक : २७
धाणिमित्तं आजीववणीमगे तिगिच्छा य । कोहे माणे माया लोभे य हवंति दस एए ॥ ४०८ ॥ पुव्वि पच्छा संथव विज्जामंते य चुन्न जोगे य । उपायणाइदोसा सोलसमे मूलकम्मे य || ४४६॥ आदके उवसग्गे तितिक्खणे बंभचेरगुत्तीओ । पाणिदयातव हेऊ सरीरपरिहारवोच्छेदो । । ६ । ६१ ।। उग्गम उप्पादण एसणं च संजोजणं पमाणं च ।
इंगाल घूम कारण अट्ठविहा पिण्डसुद्धी दु || ६ | २|| आयंके उवसग्गे तिरिक्खया बंभचेरगुत्तीसु । पाणिदया तवहेउं सरीरवोच्छेण णट्ठाए ॥ पिडे उग्गम उप्पायनेसणा जोयणा पमाणं च । इंगालधूमकारणं अट्ठविहा पिण्डणिज्जत्ती ॥ ६६६, १ ॥
उपर्युक्त गाथाओं के अतिरिक्त मूलाचार की गाथा संख्या ४२२, ४२३, ४८७, ३५०, ४७९, ४६२, पिण्डनिर्युक्ति में क्रमशः ९२, ९३, १०७, ६९२, ६६२, ५३०, गाथाएँ थोड़े-बहुत शब्द परिवर्तन के साथ समान मिलती हैं ।
कुछ निर्युक्तियों के साथ ही श्वेताम्बर परम्परा के अन्य ग्रन्थों में भी मूलाचार के समान गाथाएँ पाई जाती हैं । जीवसमास और आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक में भी ऐसी ही कुछ समान गाथाएँ उपलब्ध हैं ।
मूलाचार और जीवसमास
जीवसमास नामक ग्रन्थ महाराष्ट्री प्राकृत भाषा में निबद्ध ।" इसके कर्ता अज्ञात हैं । इसमें २८६ गाथाएँ हैं । मूलाचार और जीवसमास दोनों की बहुत सी गाथाएँ समान हैं । भाषा आदि की दृष्टि से अल्पाधिक अन्तर के साथ निम्न गाथाएँ एक जैसी मिलती हैं ।
Jain Education International
मूलाचार (पंचम पंचाचाराधिकार ) - ९, १०, ११, १२, १३, १४, १५, १६, १७, १८, १९, २१, २२, २४, २५, २६, २७, २८ ये गाथाएँ जीवसमास में क्रमशः २७, २८, २९, ३०, ३१, ३२, ३३, ३४, ३५, ३६, ३७, ३८, ३९ ४०, ४१, ४२, ४३, ४४ संख्या में समान रूप से मिलती हैं । जैसे
मूलाचार
पुढवी य बालुगा सक्करा य उवले सिला य लोणे य । अय तंव तउय सीसय रुप्प सुवण्णे य वरेय || ५|९||
१. पंच शकादि संग्रह - श्री ऋषभदेव केशरीमल जैन श्वे० संस्था रतलाम, १९२८
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org