________________
प्रास्ताविक : १३
आचार्य वट्टकेरकृत मूलाचार
अधिकार .
४५
७६
७७
२२२
गाथा संख्या १. मूलगुण २. वृहत् प्रत्याख्यानसंस्तरस्तव ७१ ३. संक्षेपप्रत्याख्यान ४. समाचार ५. पंचाचार ६. पिण्डशुद्धि
८२ ७. षडावश्यक ८. द्वादशानुप्रेक्षा ९. अनगारभावना १२५ १०. समयसार
१२४ ११. शीलगुण
२६ २२. पर्याप्ति
२०६
आचार्य कुन्दकुन्दकृत माना जाने वाला मूलाचार अधिकार
गाया संख्या मूलगुण वृहत् प्रत्याख्यानसंस्तरस्तव १०२ संक्षेपप्रत्याख्यान समाचार पंचाचार
२५१ पिण्डशुद्धि षडावश्यक
२१८ अनगारभावना
१२८ द्वादशानुप्रेक्षा समयसार
१६० पर्याप्ति
२३७ शीलगुण
७८
२७
इस तरह दोनों प्रकार की प्रतियों की गाथा संख्या में अन्तर तो है ही, अधिकारों के क्रम में भी अन्तर स्पष्ट है । वट्ट केरकृत मूलाचार की अपेक्षा कुन्दकुन्दकृत कहे जाने वाले इस मूलाचार में निम्नलिखित गाथाएँ अधिक हैं : प्रथम अधिकार में गाथाओं की संख्या कुन्द० मूलाचार में अधिक दृष्टिगोचर होती है किन्तु१८, ३९, ४०, एवं ४३ वीं गाथाओं के अतिरिक्त अन्य गाथाएँ वट्ट० मूलाचार के पिण्डशुद्धि अधिकार में आ गई है। कुन्द० मूलाचार के द्वितीय अधिकार में १९, २०, २१, २२, २३, २४, ५५, ६०, ६३, ७०, ८८, ८९ एवं ९६ वीं गाथाएँ अधिक हैं। इसी तरह तृतीय अधिकार में ५, १२, १३ वी गाथाएँ, चतुर्थ में ६५ एवं ७४ वीं गाथाएँ, पंचम में १९, २२, २३, २४, २५, ४१, ४२, ४३, ४४, ६१, ६२, ८३, ९०, १०१, १०७, १२०, १७१, १९९, २०६, २३९, २४३, २४७, २४८, २४९' २५० वीं गाथाएँ अधिक है । पिण्डशुद्धि नामक षष्ठ अध्याय में गाथाएँ इसलिए कम हैं क्योंकि इसकी कुछ गाथाएँ प्रथम अधिकार में ग्रहण की गई हैं। कुन्द० मूलाचार के सप्तम अधिकार में १४, १६, ५४, १०४, १०७, १२२, १२३, १४६, १९१ वी गाथाएँ अधिक हैं । इसी का आठवाँ अनगारभावना अधिकार है जबकि वट्ट० मूलाचार का नवम अधिकार है। इसकी तीन गाथाएँ अधिक हैं । कुन्द० मूलाचार का नवम द्वादशानुप्रेक्षाधिकार है जबकि वट्ट० मूलाचार के इसी अधिकार का क्रम आठर्वा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org