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५०६ : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन
योग
मनोयोग
वचनयोग
काययोग
सत्यमनोयोग
सत्यवचनयोग औदारिक-काययोग असत्यमनोयोग
असत्यवचनयोग औदारिक मिश्र काययोग उभयमनोयोग
उभयवचनयोग वैक्रियक काययोग अनुभयमनोयोग
अनुभयवचनयोग वैक्रियक मिश्र काययोग
आहारक काययोग आहारक मिश्र काययोग
कार्माण काययोग ५. वेद मार्गणा : आत्मा की प्रवृत्ति-चैतन्य रूप पर्याय में मैथुन के सम्मोह को उत्पन्न करने वाला वेद है । स्त्री, पुरुष और नपुंसक ये तीन वेद हैं ।'
६. कषाय मार्गणा : क्रोधादि परिणामों के द्वारा जो आत्मा के क्षमादि गुणों का नाश करते हैं उन्हें कषाय कहते हैं। क्रोध, मान, माया और लोभ ये कषाय के चार भेद हैं ।
७. ज्ञान मार्गणा : वस्तु के यथार्थ-स्वरूप को प्रकाशित करने वाला गुण ज्ञान कहलाता है । मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय और केवल ये ज्ञान के पाँच भेद हैं।
८. संयम मार्गणा : व्रतों को धारण करना, समितियों का पालना, कषाय को जोतना तथा मन, वचन और काय की प्रवृत्ति के त्याग को संयम कहते हैं। संयम के पाँच भेद हैं-सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसांपराय और यथाख्यात । इनमें असंयम और संयमासंयम ये दो भेद मिलाकर कुल सात भेद होते हैं।
१. आत्मप्रवृत्ति मैथुनसंमोहोत्पादो वेदः स्त्रीपुनपुंसकभेदेन त्रिविधः-मूलाचार
वृत्ति १२।१५६. २. मूलाचार वृत्ति १२।१५६. ३. भूतार्थप्रकाशकं ज्ञानं आत्मार्थोपलंभकं वा-वही १२।१५६. ४. सः सप्तविधः सामायिकछेदोपस्थापनपरिहारशुद्धिसूक्ष्मसांपराययथाख्यातभेदेन
असंयमासंयम-संयमश्च । मूलाचार वृत्ति १२।१५६.
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