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________________ ४ : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन सामायिक समाधि धारण करके सर्वआहार, कषाय और ममत्व भाव के त्यागपूर्वक शरीर त्याग की प्रेरणा दी है। प्रत्याख्यान, आराधनाफल, पंडितमरण, समाधिमरण तथा जन्म एवं मृत्यु का भय आदि विषयों का वर्णन करके अन्त में दस प्रकार के मुण्डों के उल्लेखपूर्वक अधिकार की समाप्ति की गयी है । ४. समाचाराधिकार : इसकी ७६ गाथाओं में विविध समाचार का अच्छा विवेचन है । समाचार शब्द के चार अर्थ बतायें है-रागद्वष से रहित समता का भाव, अतिचाररहित मलगुणों का अनुष्ठान, समस्त श्रमणों का समान तथा हिंसा रहित आचरण एवं सभी क्षेत्रों में हानि-लाभरहित कायोत्सर्गादि के परिणाम रूप आचरण । समाचार के लक्षण बताकर औधिक एवं पदविभागी ये दो समाचार के भेद किये हैं। औधिक समाचार के इच्छाकार, मिथ्याकार, तथाकार, आसिका निषेधिका. आपृच्छा, प्रतिपृच्छा, छन्दन, सनिमन्त्रण और उपसम्पत-इन दस भेदों का तथा पदविभागी समाचार का विस्तृत वर्णन है । उच्च ज्ञान प्राप्ति के निमित्त शिष्य-श्रमण को अपने गण से दूसरे गण एवं उसके आचार्य के पास किस विधि से जाना चाहिये इसका अच्छा वर्णन करके एकाकी एवं स्वच्छन्द विहार की सम्भाव्य हानियों का वर्णन तथा निषेध किया है । आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर और गणधर ये पाँच आधार जहाँ न हों वहाँ रहना उचित नहीं है । इसी प्रसंग में आचार्य के गुणों का भी कथन किया है । इस अधिकार का महत्त्वपूर्ण अंश परगण से स्वगण में आगन्तुक श्रमणों का किस प्रकार स्वागत उनकी परीक्षा तथा उनका सहयोग किया जाता है इन सबका बहुत ही स्पष्ट और सुन्दर चित्रण है। आयिकाओं का संक्षिप्त आचार, श्रमण और आयिकाओं के पारस्परिक सम्बन्धों तथा आर्यिका को दीक्षा, उपदेश करने वाले अनेक गुण-धर्मों से युक्त गणधर एवं उनकी विशेषताओं का वर्णन है । आर्यिकाओं के समाचार के अन्तर्गत एक दूसरे के अनुकूल रहने, अभिरक्षण का भाव रखने, लज्जा एवं मर्यादा का पालन करने तथा माया, रोष एवं वैर जैसे भावों से मुक्त रहने का विधान किया गया है। ५. पंचाचाराधिकार : इस अधिकार की दो सौ बाईस गाथाओं में दर्शन, ज्ञान, चारित्र तप और वीर्य-इन पंचाचारों का भेद-प्रभेदों द्वारा विस्तृत प्रतिपादन किया गया है। दर्शनाचार के अन्तर्गत जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष इन नव पदार्थों का वर्णन है । इन नव पदार्थों में जीव तत्व के संसारी और मुक्त ये दो भेद किये गये हैं। इनमें संसारी जीव के पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक तथा त्रस इन छह भेदों का भेदोपभेद पूर्वक विस्तृत प्रतिपादन है। जीव के बाद अजीव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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