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________________ :४८२ : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन वायु । वृक्षादि को गिरा देने वाली वायु महावात है। धनोदधि वात, घनवात • तथा तनुवात । पंखे आदि से उत्पन्न वायु अथवा लोक को वेष्ठित करने वाली वायु तनुवात है । ये सब वायुकायिक जीव हैं ।' उदर में स्थित वायु के पाँच भेद हैंहृदय में स्थित वायु प्राणवायु है, गुदा भाग में अपानवायु' है, नाभिमण्डल में समानवायु है, कण्ठ प्रदेश में उदानवायु है और सम्पूर्ण शरीर में रहने वाली वायु व्यानवायु है। इसी प्रकार ज्योतिष्क आदि स्वर्गों के विमान के लिए आधारभूत वायु, भवनवासियों के स्थान के लिए आधारभूत वायु आदि वायु के भेद पूर्वोक्त भेदों में अन्तत हो जाते हैं । .५.बनस्पति जिस जीव के वनस्पति नामकर्म का उदय रहता है वही जीव वनस्पति शरीर में जन्म लेता है। इसके केवल स्पर्शन इन्द्रिय ही होती है तथा संस्थान . नामकर्म के उदय से संस्थान होता है। भेद-स्थावर जीवों में वनस्पति एकेन्द्रियकाय जीव के दो भेद है-प्रत्येककाय और अनन्तकाय या साधारण काय वनस्पति । इनमें प्रत्येककाय बादर या स्थूल ही होता है पर साधारणकाय बादर और सूक्ष्म दोनों रूप होता है । प्रत्येक-काय वनस्पति : सामान्यतः एक जीव का एक शरीर अर्थात् जिनका पृथक्-पृथक् शरीर होता है या एक-एक शरीर के प्रति एक-एक आत्मा ' को प्रत्येककाय कहते हैं। जैसे खैर आदि वनस्पति । जितने प्रत्येक शरीर है • वहाँ उतने प्रत्येक वनस्पति जीव होते हैं क्योंकि एक-एक शरीर के प्रति एकएक जीव होने का नियम है । अर्थात् एक शरीर में एक जीव होने वाली वनस्पति को प्रत्येक वनस्पति कहते हैं। अनन्तकाय (साधारण) वनस्पति : जिसमें एक शरीर में अनन्त जीव हैं . १. वादुब्भामो उक्कलि मंडलि गुजा महावण तणू य । ते जाण वाउजीवा जाणित्ता परिहरेदव्वा ।। मूलाचार ५।१५. २. मूलाचारवृत्ति ५।१५. ३. मूलाचार वृत्ति १२१४८. ४. प्रत्येकं पृथक् शरीरं येषां ते प्रत्येक शरीराः खदिरादयो वनस्पतयः _ --धवला ११, १,४१, पृ० २६८ ।। ५. एकमेकमात्मानं प्रति प्रत्येकम्, प्रत्येकं शरीरं प्रत्येकशरीरम् । __--तत्त्वार्थवार्तिक ८।११।१९. ६. गोम्मटसार जीयकाण्ड जीवप्रकरण, १८१, पृ० ४२३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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