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४७४ : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन
३. सूक्ष्मत्व - पुद्गलों का भेद होने पर सूक्ष्मता उत्पन्न होती है । यह भी पुद्गल में ही प्राप्त होती है । इसके दो भेद हैं- अन्त्य और आपेक्षिक | अन्त्य सूक्ष्मता परमाणुओं में ही पायी जाती हैं जबकि दो छोटी बड़ी वस्तुओं अर्थात्. बेल, आँवला, बेर आदि रूप में तुलना की दृष्टि आपेक्षित सूक्ष्मता है ।
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४. स्थूलत्व - यह भी पुद्गल से उत्पन्न होने के कारण उसकी पर्याय है। जिस वस्तु के पुद्गल अधिक फैले रहते हैं वह वस्तु स्थूल पर्याय युक्त होती है । इसके भी अन्त्य और आपेक्षिक- ये दो भेद हैं । अन्त्य स्थूलता विश्वव्यापी महास्कन्ध में पायी जाती है तथा आपेक्षिक स्थूलता बेर, आँवला, बेल आदि में होती है ।
५. संस्थान - इसका अर्थ है आकृति (आकार) । इत्थं लक्षण तथा अनि लक्षण के भेद से संस्थान के दो भेद हैं। जिस आकार का 'यह इस तरह का है' - ऐसा बतलाया जा सके वह इत्थं लक्षण है । जैसे यह वस्तु गोल, चौकोर या त्रिकोण आदि रूप है । तथा जिसका निश्चित आकार बतलाया न जा सके वह अनित्थं लक्षण संस्थान । जैसे मेघ आदि का आकार ।
६. भेद - पुद्गल पिण्ड का भंग ( खण्ड ) होना भेद है । इसके छह भेद हैं१. उत्कर ( बुरादा आदि रूप), २. चूर्ण (गेहूँ आदि का आटा, सत्तू आदि रूप ) ३. खण्ड (मिट्टी के घड़े के टुकड़े-टुकड़े होना ), ४. चूर्णिका ( उड़द, मूंग, चना आदि के दाल रूप टुकड़े), ५. प्रतर (अभ्रक, मिट्टी, भोजपत्र आदि की तहें निकालना) तथा ६. अणुचटन अर्थात् गर्म लोहे पर घन मारने या लोहे आदि की वस्तु को शान पर चढ़ाने से जो अग्निकण (स्फुलिंग ) निकलते हैं वे अणुचटन हैं ।
७. तम (अन्धकार) - यह पदार्थ प्रतिरोधक पुद्गल की पर्याय है जो देखने में बाधक होती है । नैयायिक और वैशेषिक तम को सर्वदा अभाव रूप मानते हैं। किन्तु आँखों से उसका ज्ञान होता है अतः अन्धकार भी पौद्गलिक होने से मूर्तिक ही है । क्योंकि तम भी पदार्थों को ढकने वाला भावात्मक द्रव्य है ।
८. छाया-प्रकाश पर आवरण पड़ने पर छाया उत्पन्न होती है ।
९. आतप - सूर्य आदि का उष्ण प्रकाश आतप है ।
१०. उद्योत - चन्द्रमा, मणि, जुगनू आदि के शीतल प्रकाश को उद्योत कहते हैं ।
३. धर्मद्रव्य - - धर्मद्रव्य गतिशील जीव और पुद्गल द्रव्यों की गति, हलनचलन आदि क्रियाओं में सहायक होता है । जैसे मछली की गति में पानी सहायक है । धर्मद्रव्य लोक के हर कोने में ( सर्वत्र) विद्यमान है ।
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