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________________ ४७२ : मूलाचार कम समीक्षात्मक अध्ययन ३. स्कन्धदेश के द्वयमुलक पर्यन्त " आधे-आधे .. करने पर जितने भेद निष्पन्न होंगे वे सब स्कन्धप्रदेश हैं। अर्थात् स्कन्ध का सर्वसूक्ष्म अंश । ४. द्वयगुणक में भी भेद करने से अणु की उत्पत्ति होती है । अणु अविभागी। अर्थात इसमें भेद नहीं किये जा सकते ।' ये सब पुद्गल होने से रूपी हैं. अतः स्कन्ध, स्कन्ध-देश, स्कन्ध-प्रदेश आर अगु. भेद वाला पुद्गल द्रक्य रूपी होता है। यही जीव के साथ कर्म-नोकर्म रूप होकर बद्ध होते हैं। .. मरूपी--जिसमें रूप, रस, गन्ध और स्पर्श-इन गुणों का अभाव हो वह अरूपी द्रव्य है। धर्म, अधर्म और आकाश-ये द्रव्य अरूपी हैं । स्पर्शादिक गुण न होने से काल द्रव्य भी अरूपी है।३ छह द्रव्य : __जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल--ये छह द्रव्य है। यह लोक छह द्रव्य के समुदाय स्वरूप है । इन छह द्रव्यों में जीव द्रव्य का विवेचन किया जा चुका है । शेष पाँच द्रव्यों का विवेचन प्रस्तुत है २. पुद्गल-(Matter or energy)-'पुद्गल' जैनधर्म का पारिभाषिक शब्द है । जो द्रव्य प्रतिसमय मिलता-गलता, बनता-बिगड़ता एवं टूटता-जुड़ता रहे वह पुद्गल है। अर्थात् जो वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श युक्त हो, जिसमें मिलने एवं अलग होने आदि का स्वभाव है उसे पुद्गल कहा जाता है । छह द्रव्यों में यही मात्र मूतं या रूपी है। यह अनन्त परिमाण है । वस्तुतः पुद्गल ही एक मात्र ऐसा द्रव्य है जो खंडित भी होता है और पुनः परस्पर सम्बद्ध भी होता है। यह छुआ चखा, सूघा और देखा भी जा सकता है। पुदगल द्रव्य को पर्यायें-शब्द, बंध, सूक्ष्मत्व, स्थूलत्व, संस्थान, भेद, अन्धकार, छाया, आतप और उद्योत-ये पुद्गल द्रव्य की अवस्थायें हैं। १. परमाणू चेव अविभागी-मूलाचार ५१३४. २. कुन्द० मूलाचार ५।४१, पृ० १२५. ३. ते पुणधम्माधम्मागासा य अरूविणो य तह कालो 1.. खंध देस पदेसा अणुत्ति वि य पोग्गला रूवी । वही, ५।३५. ४. (क) पूरणगलनान्वर्थसंज्ञत्वात् पुद्गला:-तत्त्वार्थवार्तिक ५११४२४.. (ख) पुंगिलनात् पूरणगलनाद्वा पुद्गल इति-वही ५।१९।४०. ५. मूलाचारवृत्ति ५।३५.. . ६. शब्दबन्धसोक्षम्यस्थौल्यसंस्थानभेदतमश्छायातपोद्योतवन्तश्च-त० सू० ५।२४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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