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४५२ : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन नहीं करना चाहिए क्योंकि मुक्ति के कारण में वर्षों की गणना नहीं होती। बहुत से वैरागी-धीर श्रमण तीन रात्रि मात्र में ही चारित्रधारी होकर सिद्ध हो गये हैं।'
वट्टकेर ने रूपकालंकार द्वारा संसार समुद्र से पार होने के लिए तीनों की एकरूपता की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा है कि ज्ञान निर्जीवक (मल्लाह) है, ध्यान हवा है तथा चारित्र जहाज (नौका) है और यह संसार समुद्र-रूप है। इन ज्ञान, ध्यान और चारित्र के संयोग से भव्यजीव जल्दी ही संसार रूप समुद्र से पार होकर मुक्ति प्राप्त कर लेता है। अतः शुद्ध दशा में आत्मा को स्थिर रखने का प्रयास करना चाहिए।
भेद-परिणामों की विशुद्धि एवं निमित्त भेद की अपेक्षा सम्यक्चारित्र के पाँच भेद हैं-सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहार विशुद्धि, सूक्ष्मसाम्पराय और यथाख्यात ।
(१) सामायिक-राग-द्वेष के निरोध पूर्वक प्रत्येक कार्य एवं वस्तु के प्रति पूरी तरह से समभाव रखना सामायिक चारित्र है। सामायिक शब्द में समय का अर्थ है सम्यक्त्व, ज्ञान, संयम तथा तप और इन सबके साथ ऐक्य रखना सामायिक है । निश्चय सम्यग्दर्शन-ज्ञान की एकाग्रता द्वारा समस्त सावद्य-योग का त्याग करके शुद्धात्म स्वरूप में अभेद होने पर शुभाशुभ भावों का त्याग करना अर्थात् समभाव में स्थिर रहने के लिए सम्पूर्ण अशुद्ध प्रवृत्तियों का त्याग करना सामायिक चारित्र है। इसमें समस्त सावध योग का एकदेश त्याग होता है । यह चारित्र छठे से नवम गुणस्थान तक होता है।
(२) छेदोपस्थापन-पंचसंग्रह में कहा है कि सावध पर्याय रूप पुरानी पर्याय को छेदकर अहिंसादि पंच महाव्रत रूप धर्म में अपनी आत्मा को स्थापित करना छेदोपस्थापना है । अर्थात् सामायिक चारित्र से युक्त कोई जीव उससे हटकर सावध व्यापार युक्त हो जाता है, ततः प्रायश्चित्त द्वारा उन दोषों को छेदकर, आत्मा
१. मूलाचार १०१७४. २. णिज्जावगो य णाणं वादो झाणं चरित्त णावा हि ।
भवसागरं तु भविया तरंति तिहिसण्णिपायेण ।। वही १०७. ३. सामायिकछेदोपस्थापनापरिहारविशुद्धिसूक्ष्मसांपराययथाख्यातमितिचारित्रम् ।
-तत्त्वार्थसूत्र ९।१८. ४. पंचसंग्रह, प्राकृत १११३०.
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