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जैन सिद्धान्त : ४४३
रत्नत्रय:
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष-इन चार पुरुषार्थों में यथार्थ सुख का कारण 'मोक्ष' ही सर्वोत्तम पुरुषार्थ है' और ज्ञान, श्रद्धान व चारित्ररूप रत्नत्रय उसका स्वरूप है । २ 'रत्नत्रय' जैनधर्म का पारिभाषिक शब्द है। सम्यक्-दर्शन, सम्यक्ज्ञान और सम्यक् चारित्र-मोक्ष प्राप्ति के इन तीन साधनों को रत्नत्रय कहा जाता है। ये तीनों मिलकर मोक्ष के साधन हैं। समयसार में इन्हें परिभाषित करते हुए कहा है कि जीव, अजीव आदि तत्त्वों का श्रद्धान सम्यग्दर्शन है, सामान्य विशेष रूप से इन तत्त्वों का अधिगम (अवधारण) करना सम्यग्ज्ञान है तथा राग-द्वेष आदि दोषों का परिहार करना सम्यक् चारित्र है। इस प्रकार ये तीनों समुचित रूप में मिलकर एक अखण्ड मोक्ष का मार्ग हैं। पंचास्तिकाय के अनुसार नौ पदार्थों का स्वरूप ज्ञानियों ने जिस प्रकार निरूपित किया है, उस स्वरूप पर श्रद्धा या रुचि होना सम्यग्दर्शन (सम्यक्त्व) है। इन पदार्थों के सच्चे ज्ञान को सम्यग्ज्ञान और उस ज्ञान के प्रताप से विषयों के प्रति आसक्ति रहित होकर, समभावपूर्वक प्रवृत्ति करना सम्यक्चारित्र है। श्रद्धा, और ज्ञान से युक्त तथा राग-द्वेष से रहित चारित्र ही मोक्ष का मार्ग है। मोक्ष के अधिकारी एवं विवेक बुद्धि से सम्पन्न पुरुष मोक्षमार्ग पाते हैं ।" आचार्य समन्तभद्र ने इसी रत्नत्रय को धर्म कहा है तथा इससे विपरीत मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र को संसार का कारण बतलाया है।
मूलाचार के अनुसार सम्यक्त्व से ज्ञान में सम्यक्पना आता है । सम्यग्ज्ञान से जीवादि सभी पदार्थों को बोधि होती है और पदार्थों के ज्ञान से यह आत्मा श्रेयस
१. धम्मह अत्यहँ कामहं वि एयहँ सयलहं मोक्खु ।
उत्तमु पभणहिं णाणि जिय अण्णे जेण ण सोक्खु ॥ परमात्मप्रकाश २।३. २. चतुर्वर्गेऽग्रणी मोक्षो, योगस्तस्य च कारणम् । ३ ज्ञानश्रद्धान चारित्ररूपं रत्नययं च सः ॥ योगशास्त्र (आ०हेमचन्द्र) १.१५.
सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः-तत्त्वार्थसूत्र १११. ४. जीवादिसद्दहणं सम्मत्तं तेसिमधिगमो णाणं । ।
रागादीपरिहणं चरणं एसो दु मोक्खपहो । समयसार १५५. ५. पंचास्तिकाय १०६-१०८ ६. सदृष्टिज्ञानवृत्तानि धर्म धर्मेश्वरा विदुः।
यदीय प्रत्यनीकानि भवन्ति भवपद्धतिः ॥ २० क० श्रावकाचार ३.
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