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________________ षष्ठ अध्याय जैन सिद्धान्त श्रमणों के आचार का प्रधान रूप से प्रतिपादन करने वाले इस मूलाचार में पर्याप्ति नामक बारहवें अन्तिम अधिकार के अन्तर्गत पर्याप्ति, देह, काय-संस्थान, इन्द्रिय संस्थान, योनि, आयु, प्रमाण, योग, वेद, लेश्या, प्रवीचार, उपपाद, उद्वर्तन, स्थान, कुल, अल्पबहुत्व, प्रकृतिबन्ध, स्थितिबन्ध, अनुभागबन्ध और प्रदेशबन्ध-इन बीस सूत्रपदों का तथा प्रायः सभी अधिकारों में जैनधर्म दर्शन के अनेक प्रमुख जैन सिद्धान्तों का प्रसंगानुसार विस्तृत प्रतिपादन आचार्य वट्टकेर ने किया है । कुछ विद्वान् श्रमणाचार-सम्बन्धी प्रतिपादन के प्रसंग में इन विषयों का प्रतिपादन अप्रासंगिक मानते हैं। किन्तु सर्व सिद्धान्त और करण-चरण के समुच्चय रूप इस पर्याप्ति अधिकार में विशेष रूप से वणित विषयों का श्रमणाचार के प्रसंग में प्रतिपादन सर्वथा उपयुक्त ही है। क्योंकि आध्यात्मिक क्षेत्र में ज्ञान और आचरण का समन्वय आवश्यक माना गया है। यहाँ ज्ञान से तात्पर्य है मोक्ष और उसके साधन संयम आदि का ज्ञान और इसके लिए जीव-अजीव आदि तत्त्वों का ज्ञान आवश्यक है । दूसरे शब्दों में कहा जाय तो यही कि मूलाचार के पर्याप्ति अधिकार में प्रतिपादित सूत्रपदों का ज्ञान आवश्यक है तभी श्रमणाचार के पालन की सार्थकता है । आचार्य वट्टकेर की दृष्टि में पर्याप्ति आदि तथा जैनधर्म के अन्यान्य प्रमुख सिद्धान्तों सम्बन्धी ज्ञान के बिना मात्र श्रमणाचार का ज्ञान अधूरा ही है। अतः उन्होंने एक व्यवस्थित रूपरेखा के अनुसार ही 'मूला. चार' ग्रन्थ का निर्माण करते समय प्रसंगानुसार इन विषयों का प्रतिपादन करना आवश्यक समझा। दशवकालिक में कहा भी है कि जो जीव को नहीं जानता, अजीव को नहीं जानता, जीव और अजीव दोनों को नहीं जानता, वह संयम को कैसे जानेगा ?२ १. पज्जत्ती देहो वि य संठाणं कायइंदियाणं च । जोणी आउ पमाणं जोगो वेदो य लेस पविचारो ।। उववादो उवट्टण ठाणं च कुलं च अप्पबहुलो य । पयडिट्ठिदि अणुभागप्पदेसबंधो य सुत्तपदा ॥ मूलाचार १२१२-३ २. जो जीवे वि न याणाइ अजीवे वि न याणई। जीवाजीवे अयाणंतो कहं सो नाहिइ संजमं ॥ दशव० ४।१२. Jain Education International. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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