________________
४३४ : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन के भी विषय में समझना चाहिए। इसीलिए आर्यिकाओं के आचार का स्वतन्त्र प्रतिपादन आवश्यक नहीं समझा गया । ___इस तरह श्रमण संस्कृति में आयिका संघ का महत्त्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि आचार-विचार के पालन, धर्म के संचालन, जैन साहित्य, संस्कृति, एवं कला को विकास की दिशा प्रदान करने, श्रावक-श्राविकाओं तथा सम्पूर्ण भारतीय समाज को नैतिक एवं उच्च आदर्शमय जीवन की आंतरिक प्रेरणा देने में आर्यिकाओं की सदा अहं भूमिका रही है । इसका एक सुव्यवस्थित रूप हमारे समक्ष उपस्थित होता है। ये सभी एक साथ रहकर संयम और चारित्र की आराधना में सतत् तत्पर रहती हैं । आर्यिका संघ में एक प्रधान आर्यिका गणिनी (महत्तरिका) के पद का विधान होता है, जो आर्यिका संघ का सुचारु रूप से संचालन आचार्य के नेतत्व में करती हैं। · बौद्ध भिक्षुणी संघ-बौद्ध परम्परा के अनुसार भिक्षुणी-संघ में भी अनेक पदों की व्यवस्था थी तथा उनके आचरण सम्बन्धी नियमों का विधान भिक्षुओं के सदृश था। जब भ० बुद्ध ने भिक्षुणी संघ की स्थापना की तब निम्नलिखित आठ गुरु-धर्म भिक्षुणी संघ के लिए स्थापित किये थे जो इस प्रकार है१-सौ वर्ष की उपसम्पदा पाई हुई भिक्षुणी को भी उसी संघ के सम्पन्न भिक्षु के लिए अभिवादन, प्रत्युत्थान, अंजलि जोड़ना, समीचीन कर्म करना चाहिए। २-जहाँ भिक्षु न हों, ऐसे स्थान में वर्षावास नहीं करना चाहिए । ३-प्रति आधे मास भिक्षुणी को भिक्ष संघ से पर्येषण करना चाहिए । ४-वर्षावास कर चुकने पर भिक्षुओं को दोनों संघों में देखें, सुने जाने वाले तीनों स्थानों से प्रवारणा करनी चाहिए । '५-जिस भिक्षुणी ने गुरु धर्मों को स्वीकार कर लिया है उसे दोनों संघों में मानना चाहिए। ६-किसी प्रकार की भिक्षुणी भिक्षु को गाली आदि न दें। ७-भिक्षुओं से भिक्षुणियों को बात नहीं करनी चाहिए । ८-भिक्षुओं को उन्हें उपदेश करने का अधिकार है । इन प्रधान नियमों के अलावा भिक्षुणियों के दैनिक जीवन के लिए अनेक साधारण नियम थे ।' ___ इस प्रकार बौद्ध भिक्षुणी संघ के सामान्य नियमों पर दृष्टिपात करने से ज्ञात होता है कि जैन आर्यिका संघ के सामान्य नियमों तथा बौद्ध भिक्षुणी संघ के सामान्य नियमों में अनेक प्रकार से समानता दिखलाई देती है।
१. पालि साहित्य का इतिहास (भरत सिंह उपाध्याय) पृ० ३२१.
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org