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________________ आर्यिकाओं की आचार पद्धति : ४२७ श्रमण- प्रमुख के साथ सहज, सरल और निर्विकार वाक्यों द्वारा मृदु वचन बोलेतो वही वास्तविक गच्छ कहलाता है ।' 1 स्वाध्याय सम्बन्धी विधान मुनि और आर्यिका आदि सभी के लिए स्वाध्याय आवश्यक होता है । वट्टकेर ने स्वाध्याय के विषय में आर्यिकाओं के लिए लिखा है कि गणधर प्रत्येकबुद्ध, श्रुतकेवली तथा अभिन्नदशपूर्वधर - इनके द्वारा कथित सूत्रग्रंथ, अंगग्रंथ तथा पूर्वग्रंथ - इन सबका अस्वाध्यायकाल में अध्ययन मन्दबुद्धि के श्रमणों और आर्यिका समूह द्वारा निषिद्ध है । अन्य मुनिश्वरों को भी द्रव्य क्षेत्र - काल आदि की शुद्धि के बिना उपर्युक्त सूत्रग्रंथ पढ़ना निषिद्ध है । किन्तु इन सूत्रग्रंथों के अतिरिक्त आराधनानियुक्ति, मरणविभक्ति, स्तुति, पंचसंग्रह, प्रत्याख्यान, आवश्यक तथा धर्मकथा सम्बन्धी ग्रंथों को एवं ऐसे ही अन्यान्य ग्रंथों को आर्यिका आदि सभी अस्वाध्याय काल में भी पढ़ सकती हैं । २ वंदना - विनय संबंधी व्यवहार : वन्दना पाँच हाथ दूर से, वन्दना सात हाथ दूर से अध्यापक ( उपाध्याय) एवं शास्त्रों के अनुशार सौ वर्ष की दीक्षित आर्यिका से भी नव दीक्षित श्रमण पूज्य और ज्येष्ठ माना गया है । अतः स्वाभाविक है कि आर्यिकायें श्रमण के प्रति अपना विनय प्रकट करती हैं । आर्यिकाओं के द्वारा श्रमणों की वन्दना विधि के विषय में कहा है कि आर्यिकाओं को आचार्य की उपाध्याय की वन्दना छह हाथ दूर से एवं साधु की गवासन पूर्वक बैठकर ही करनी चाहिए । यहाँ सूरि, साधु शब्द से यह भी सूचित होता है कि आचार्य से पाँच हाथ दूर से ही आलोचना एवं वन्दना करना चाहिए । उपाध्याय से छह हाथ दूर बैठकर अध्ययन करना चाहिए एवं सात हाथ दूर से साधु की वन्दना, स्तुति आदि कार्य करना चाहिए, अन्य प्रकार से नहीं । यह क्रमभेद आलोचना, अध्ययन और स्तुति करने की अपेक्षा से हो जाता है । मोक्षपाहुड की टीका के अनुसार श्रमण और आर्यिका के बीच परस्पर वन्दना उपयुक्त तो नहीं है, किन्तु यदि आर्यिकायें: १. गच्छाचार पइन्ना, १२९-१३०. २. मूलाचार ५।८०-८२, वृत्तिसहित । ३. पंच छ सत्त हत्थे सूरी अज्झावगो य साधु य । परिहरिऊण ज्जाओ गवासणेणेव वंदति ॥ Jain Education International —मूलाचार ४।१९५ वृत्ति सहित For Private & Personal Use Only. www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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