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आर्यिकाओं की आचार पद्धति : ४२३.
लिंग होता है। इसीलिये सागार धर्मामृत में कहा भी है कि एक कौपीन (लंगोटी) मात्र में ममत्व भाव रखने से उत्कृष्ट श्रावक (ऐलक) भी महाव्रती नहीं कहलाता जबकि आर्यिका साड़ी में भी ममत्व भाव न रखने से उपचरित महाव्रत के योग्य होती है । ___ वस्तुतः स्त्रियों की शरीर-प्रकृति हो ऐसी है कि उन्हें अपने शरीर को वस्त्र से सदा ढके रखना आवश्यक होता है । इसीलिए आगम में कारण की अपेक्षा से आर्यिकाओं को वस्त्र की अनुज्ञा है । श्वेताम्बर परम्परा के बृहत्कल्पसूत्र (५।१९) में भी कहा है-नो कप्पइ निग्गंथीए अचेलियाए होत्तए-अर्थात् निम्रन्थियों (आर्यिकाओं) को अचेलक (निर्वस्त्र) रहना नहीं कल्पता। आचार्य कुन्दकुन्दकृत प्रवचनसार की प्रक्षेपक गाथा में कहा है कि निर्दोष होने पर भी आर्यिकाओं को अपना शरीर वस्त्रों से ढके रहना पड़ता है अतः विरक्तावस्था में भी उन्हें वस्त्र धारण का विधान है। इसीलिए वस्त्र त्याग की आशक्यता होने से तत्सम्बन्धी निराकुलता एवं चित्त की दृढ़ता उनमें हो नहीं सकती अतः आर्यिकाओं में उपचार से ही महाव्रत कहे हैं ।
दौलत 'क्रिया कोश' में कहा है कि आर्यिकायें एक सादी सफेद धोती (साड़ी), पिच्छी, कमण्डलु एवं शास्त्र रखती है । बैठकर करपात्र में आहार ग्रहण करती हैं तथा अपने हाथों से केशलुञ्चन करती हैं। इस प्रकार अट्ठाईस मूलगुण (उपचार से) और समाचार विधि का आयिकायें पालन करती हैं। साड़ी मात्र परिग्रह धारण करती हैं अर्थात् एक बार में एक साड़ी पहनती हैं--ऐसे दो साड़ी का परिग्रह रहता है ६
श्वेताम्बर परम्परा में साध्वी को चार वस्त्र रखने का विधान है । एक वस्त्र
१. भ० आ०. ८० विजयोदया टीका सहित । २. कौपीनेऽपि समूर्छत्वान्नार्हत्यार्यो महाव्रतम् ।
अपि भाक्तममूर्छत्वात् साटकेऽप्यार्यिकार्हति ।। सागारधर्मामृत ८।३७. ३. आर्यिकाणामागमे अनुज्ञातं वस्त्रं कारणापेक्षया--भ० आ० विजयोदया ४२३.
पृ० ३२४. ४. प्रवचनसार गाथा २२५ के बाद प्रक्षेपक गाथा ५. ५. क्रियाकोश : महाकवि दौलतरामकृत । ६. वस्त्रयुग्मं सुवीभत्सलिंगप्रच्छादनाय च ।
आर्याणां संकल्पेन तृतीये मूलमिष्यते ॥ प्रायश्चित्त संग्रह ११९.
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