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आयिकाओं की आचार पद्धति : ४२१ कर सकतीं। गाँव के बाहर सूर्य के सामने हाथ ऊँचा करके आतापना नहीं ले सकती तथा अचेल एवं अपात्र (जिनकल्प) अवस्था धारण नहीं कर सकतीं।' बौद्ध परम्परा में भी स्त्री सम्यक-सम्बुद्ध नहीं हो सकती। आयिका के लिए प्रयुक्त शब्द :
वर्तमान समय में सामान्यतः दिगम्बर परम्परा महाव्रत आदि धारण करने वाली दीक्षित स्त्री को 'आर्यिका' तथा श्वेताम्बर परम्परा में इन्हें 'साध्वी' कहा जाता है । दिगम्बर प्राचीन शास्त्रों में इनके लिए आयिका', आर्या', विरती, संयती, संयता, श्रमणी', आदि शब्दों के प्रयोग मिलते हैं। प्रधान आर्यिका को गणिनी तथा संयम, साधना एवं दीक्षा में ज्येष्ठ वृद्धा आर्यिका को स्थविरा (थेरी)° कहा गया है । यायिकाओं का वेष : ___ आयिकायें निर्विकार वस्त्र एवं वेष धारण करने वाली तथा पूरी तरह से शरीर-संस्कार (साज-शृंगार आदि) से रहित होती हैं । उनका आचरण सदा अपने धर्म, कुल, कीर्ति एवं दीक्षा के अनुरूप निर्दोष होता है।" वसुनन्दी के अनुसारआयिकाओं के वस्त्र, वेष और शरीर आदि विकृति से रहित, स्वाभाविक-सात्त्विक होते हैं अर्थात् वे रंग-विरंगे वस्त्र, विलासयुक्त गमन और भूविकार-कटाक्ष आदि से रहित वेष को धारणा करने वाली होती हैं। जल्ल (प्रस्वेद-पसीना से युक्त रज)
१. बृहत्कल्प ५११९-३४ तक (चारित्र प्रकाश पृष्ठ १३९.) २. अट्टानमेतं भिक्खवे अनवकासो यं इत्थी अरहं अस्स सम्मासम्बुद्धो-अंगुत्तर
निकाय ११९. ३. भ० आ० ३९६ तथा वि० टीका ४२१. ४. मूलाचार ४११७७, १८४, १८५, १८७, १९१, १९६, सुत्तपाहुड २२. ५. वही, ४।१८०, १०।६१. ६. मूलाचार वृत्ति ४।१७७. ७. त्यक्ताशेष गृहस्थवेषरचना मंदोदरी संयता । पद्मपुराण ८. श्रीमती श्रमणी पार्वे बभूवुः परमार्यिका । वही, ९. गणिणी मूलाचार ४।१७८, १९२. गणिनी महत्तरिका
-वही वृत्ति ४।१७८, १९२. १०. थेरीहिं सहंतरिदा भिक्खाय समोदरंति सदा । मूलाचार ४।१९४. ११. अविकारवत्थवेसा जल्लमलविलित्तचत्तदेहाओ।
धम्मकुलकित्तिदिक्खा पडिरूपविसुद्धचरियाओ ॥ मूलाचार ४।१९०.
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