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________________ श्रमण संघ : ४०९ भले ही अल्प हो तथापि जो अनिंदित, असंयतजनों से अप्रार्थनीय (अनिच्छनीय), तथा मूर्च्छा आदि उत्पन्न करने वाली न हो— इन विशेषताओं से युक्त उपधि ही श्रमण को ग्रहण करना चाहिए ।" श्रमणों के पास निम्नलिखित उपकरण होते हैं १. संयमोपकरण (पिच्छिका ) :- संयम के उपकरण के रूप में श्रमण के पास प्रतिलेखन हेतु पिच्छिका होना अनिवार्य है । प्रतिलेखन (पडिलेहण ) का अर्थ है। शोधन, सम्मार्जन, निरीक्षण निरूपण, विचार करना अथवा देखना है । अतः सूक्ष्म जीवों की रक्षार्थं, तथा दया पालन हेतु बाह्य उपकरण के रूप में पिच्छिका आवश्यक है । अचेलकत्व आदि की तरह पिच्छिका को भी श्रामण्य का बाह्य चिह्न माना है । दशवैकालिक तथा इसकी टीकाओं में भी श्रमण को वायुकायिक जीवों की रक्षार्थं मोरपंख और मोर-पिच्छी से हवा न करने का निर्देश है । यहाँ मयूरपिच्छ से तात्पर्य है मोर-पिच्छों का अथवा अन्य पिच्छ का समूहएक साथ बंधा हुआ गुच्छ । ५ कार्तिक मास में मयूर अपने पंखों को छोड़ देते हैं । अतः पिच्छी स्वयं पतित मयूर पंखों से निर्मित होती है। वनों में विचरते समय वृक्षों के नीचे पुष्कल परिमाण में स्वयं पतित मयूर के पंख अनायास ही मिल जाते हैं और उन्हीं पंखों - को इकट्ठा करके, उनके लवभाग ( अग्रभाग) से पिच्छी बना लेते हैं । पिच्छी मात्र प्रतिलेखन का ही कार्य नहीं करती अपितु सामायिक, वन्दना, प्रतिक्रमण, ु १. अप्परिकुट्ठ उवधि अपत्थणिज्जं असंजदजणेहि । मुच्छादिजणणरहिदं गेहदु समणो जदि वि अप्पं ॥ प्रवचनसार २२३. २. प्रतिलेखनं मयूरपिच्छग्रहणं - मूलाचार वृत्ति १०।१०४. ३. मूलाचार १०।२३. ४. दशवेकालिक ४।२१. ५. (क) पेहुणं मथुरादिपिच्छम्, पेहुण हस्तः -- तत्समूहः । दशवे ० हारिभद्रीयटीका पत्र १५४. (ख) पेहुणं मोरपिच्छ वा अण्णं किचि वा तारिसं पिच्छं || पिहुणाहत्यओ • सोरिग - कुच्चओ, गिद्धपिच्छाणि वा एगओ बद्धाणि - दशवै० जिनदास चूर्णि पृ० १५६. ६. मत्येति कार्तिके मासि कार्यं सत्प्रतिलेखनं । स्वयं पतित पिच्छानां लिगं चिह्न च योगिभिः । मूलाचार प्रदीप ९ । ३६. ७. पिच्छि - कमण्डलु — मुनिश्री विद्यानन्द जी, पृष्ठ ९५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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