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________________ [ ११ ] ३०. श्रमण संघ : एक पुनरावलोकन ३१. श्रमण संघ : परिवर्तन की दिशा १. संघ, २. गण, ३. गच्छ, ४ अन्वय आर्यिकाओं की आचार पद्धति ३. रत्नत्रय १. चतुर्विध संघ में आर्यिकाओं का स्थान २. उपचार से महाव्रत होने के कारण तद्भव मोक्ष नहीं ३. आर्यिका के लिए प्रयुक्त शब्द ४. आर्यिकाओं का वेष ५. वसतिका ६. समाचार : विहित एवं निषिद्ध ७. आहारार्थ गमन विधि ८. स्वाध्याय सम्बन्धी विधान ९. वंदना - विनय सम्बन्धी व्यवहार १०. आर्यिका और श्रमण : परस्पर सम्बन्धों की मर्यादा ११. आर्यिकाओं के गणधर १२. आर्यिका संघ १३. गणिनी ( प्रधान ) - आर्यिका १४. बौद्ध भिक्षुणी संघ १. जैन सिद्धान्त २. लोक स्वरूप विमर्श (क) अधोलोक (ख) मध्यलोक (ग) उर्ध्वलोक षष्ठ अध्याय : जैन सिद्धान्त १. सम्यग्दर्शन (क) सम्यग्दर्शन की महत्ता (ख) सम्यग्दर्शन के भेद २. सम्यग्ज्ञान सम्यग्ज्ञान के पाँच भेद १. मतिज्ञान, २. श्रुतज्ञान, ३. अवधिज्ञान, ४. मन:पर्ययज्ञान ५. केवलज्ञान Jain Education International For Private & Personal Use Only ४१४ ४१५ ४१६ ४१७ ४१८ ४२१ ४२१ ४२४ ४२५ ४२६ ४२७ ४२७ ४२८ ४३० ४३२ ४३३ ४३४ ४३५-५२५ ४३५ ४३७ ४३९ ४३९ • ४४३ ४४५ ૪૪૬ ૪૪. ४४८-४५० www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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