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२. विहारचर्या
१. विहार चर्या का महत्त्व २ विहारशील श्रमण के भाव और कर्तव्य ३. विहार योग्य क्षेत्र तथा मार्ग ४. गमनयोग में अपेक्षित सावधानी ५. रात्रि विहार का निषेध ६. नदी आदि जलस्थानों में प्रवेश तथा नाव-यात्रा ७. श्रमणों के ठहरने योग्य स्थान-वसतिका ८. ठहरने के अयोग्य (वर्जनीय) क्षेत्र ९. वसतिका में प्रवेश और बहिर्गमन की विधि १०. एकाकी विहार और उसका निषेध ११. एकाकी विहार का निषेध क्यों ? १२. एकल विहारी कौन ?
१३. उपसंहार ३. व्यवहार
१. श्रमण का जीवन-व्यवहार २. सामान्य व्यवहार ३. सम्यक्-आचार (समाचार) : औधिक और पदविभागी ४. औधिक के दस भेद
१. इच्छाकार, २. मिथ्याकार, ३. तथाकार, ४. आसिका, ५. निषेधिका, ६. आपृच्छा, ८.
छन्दन ९. निमन्त्रणा, १०. उपसंपत् ५. श्रमणों के परस्पर व्यवहार ६. वैयावृत्त्य सम्बन्धी व्यवहार ७. वन्दना सम्बन्धी परस्पर व्यवहार ८. वन्दना (विनय) की विधि ९. कब वन्दना न करें? १... निषिद्ध व्यवहार ११. निषिद्ध वचन व्यवहार १२. अन्य निषिद्ध व्यवहार १३. रात्रि मौन १४. प्रायश्चित्त सम्बन्धो व्यवहार
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