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[ ७ ] १३. अनुप्रेक्षा : द्वादश अनुप्रेक्षायें
२३०-२३७ १. अध्रुव २. अशरण ३. एकत्व ४. अन्यत्व ५. संसार ६. लोक ७. अशुचि ८. आस्रव ९. संवर १०. निर्जरा
११. धर्म १२. बोधिदुर्लभ १४. शील : शील के अठारह हजार भेद
२३८-२३९ चतुर्थ अध्याय : आहार, विहार और व्यवहार : २४३-३५० १. आहारचर्या
२४४-२८२ १. आहार : स्वरूप और भेद
२४५ २. आहार ग्रहण का उद्देश्य
२४७ ३. आहार ग्रहण और त्याग के कारण
२४८ ४. भिक्षा (आहार) चर्या के नाम
२४९-२५२ १. उदराग्नि प्रशमन, २. अक्षमृक्षण,
३. श्वभ्रपूरण, ४. गोचरी, ५. भ्रामरी ५. आहार का समय :
२५२-२५३ (क) भिक्षाकाल, (ख) बुभुक्षाकाल, (ग) अवनहकाल ६ आहारार्थ गमन-विधि
२५४-२५६ ७. संकल्प (अभिग्रह) पूर्वक गमन का विधान
२५६-२५८ ८. आहार ग्रहण के योग्य घर
२५९ ९. आहार शुद्धि
२६१ १०. आहार के बत्तीस अन्तराय
२६४ ११. आहार ग्रहण विधि
२६६ १२. आहार की मात्रा
२६७ १३. आहार (पिंड) सम्बन्धी दोष
२६९-२७१ १. उद्गमदोष, २, उत्पादन दोष, ३. एषणा दोष ४. संयोजना दोष, ५. प्रमाण दोष, ६. इंगाल दोष ७. धूमदोष, ८. करण दोष
तथा अधःकर्मदोष १४. आहार दोषों के छयालिस भेद :
२७१-२८२ (क) उद्गमदोष के सोलह प्रकार
२७१-२७५ (ख) उत्पादन दोष के सोलह भेद
२७५-२७८ (ग) एषणा विषयक दस दोष
२७८-२७९ (घ) संयोजना के चार दोष
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