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________________ ३७२ : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन इनके अतिरिक्त नवनियुक्त उत्तराधिकारी आचार्य भी होते हैं जिन्हें बालाचायं कहा जाता है । आवश्यक नियुक्ति में नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव इन निपेक्षों की दृष्टि से आचार्य के चार भेद किये हैं।' महानिशीथ में भावाचार्य को " तीर्थंकर के समान समझने का निर्देश है। २. उपाध्याय : श्रमणसंघ में आचार्य के बाद उपाध्याय का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है । नवकार में भी पंचपरमेष्ठी के रूप में उपाध्याय का चतुर्थ स्थान है। अर्थ और सूत्र के अधिकारी आचार्य और उपाध्याय होते हैं । अर्थ वाचना आचार्य देते हैं और सूत्र की वाचना देने का कार्य उपाध्याय करते हैं । पास में आकर जिनसे अध्ययन किया जाए वे उपाध्याय है। जिनके समीप जिनप्रवचन पढ़ा जाता है, वे सूत्र-प्रदाता मुनिवर उपाध्याय कहलाते हैं। आवश्यक नियुक्ति में आचार्य भद्रबाहु ने 'उज्झा' (उपाध्याय) पद की नियुक्ति में कहा गया है कि 'उ' अर्थात् उपयोगकरण 'ज्झा' अर्थात् ध्यानकरण । इसप्रकार उपयोगपूर्वक ध्यान करने वाले को 'उज्झा' कहते हैं । जो द्वादशांग का स्वयं अध्ययन करता है तथा दूसरों को वाचना रूप से उपदेश देता है उसे 'उपाध्याय' कहते हैं। अपराजितसूरि के अनुसार उपाध्याय असमस्त श्रुतज्ञान के धारी, रत्नत्रय के अतिचारों के ज्ञाता, स्वाभाविक बुद्धिमान और जितेन्द्रिय महात्मा होते हैं । ये विवेच्य वस्तु का समस्त अङ्गोपाङ्ग स्वरूप, दृष्टान्त एवं युक्तिपूर्वक विवेचन करने वाले तथा कुपित क्षपक को भी अपनी मधुर वाणी से प्रसन्न करने वाले होते हैं । वस्तुतः जिनोपदिष्ट द्वादश अंग रूप श्रुत को स्वाध्याय कहा जाता है तथा १. आवश्यक नियुक्ति गाथा ९८७-९८८. २. जे ते भावायरिया ते तित्थयरसमा चेव दळुव्वा ...। महानिशीथ अ० १. ३, अत्थं वाएइ आयरियो, सुत्तं वाएइ उवज्झाओ। वृत्ति- अर्थप्रदा आचार्याः, सूत्रप्रदा उपाध्यायाः-ओघनियुक्ति वृत्ति ।। ४. उपेत्यास्मादधीयते उपाध्यायः---मूलाचार वृत्ति ४-१५५. ५. उप = समीपम् आगत्य अधीयते जिनप्रवचनं यस्मात्स उपाध्यायः-सूत्र प्रदातेत्यर्थः--कल्पसूत्रटीका पृष्ठ ५०. ६. आवश्यक नियुक्ति गाथा ९९६. ७. वही गाथा ९९५. ८. भ. आ. विजयोदया टीका ५००. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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