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________________ ३६४ : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन ५. वाचना सम्पदा-१. विदित्वोद्देशन-शिष्य की योग्यता को जानकर उद्देशन करना ! २. विदित्वा समुद्देशन-शिष्य की योग्यता जानकर समुद्देशन करना । ३. परिनिर्वाप्यवाचना-पहले दी गई वाचना को पूर्ण हृदयंगम कराके आगे की वाचना देना। ४. अर्थ निर्यापणा-अर्थ के पौर्यापर्य का बोध कराना। ६. मति सम्पदा-(बुद्धि-कौशल)-१. अवग्रह, २. ईहा, ३ अवाय, ४. धारणा-ये चार मति सम्पदायें हैं । ७. प्रयोग सम्पदा (वाद-कौशल)-१. आत्मपरिज्ञान-वाद या धर्मकथा में अपने सामर्थ्य का परिज्ञान, २. पुरुष परिज्ञान-वादी के मत का ज्ञान, परिषद् का ज्ञान । ३. क्षेत्र परिज्ञान--वाद करने के क्षेत्र का ज्ञान । ४. वस्तु परिज्ञान-वाद-काल में निर्णायक के रूप में स्वीकृत सभापति आदि का ज्ञान । ८. संग्रह-परिज्ञा-(संघ व्यवस्था में निपुणता)- १. बालादियोग्यक्षेत्र-व्यवहारभाष्य में इसके स्थान पर 'बहुजनयोग्य क्षेत्र' शब्द दिया है।' तथा इसके दो अर्थ किये हैं । १-वर्षा ऋतु के लिए सम्पूर्ण संघ के योग्य विस्तीर्ण क्षेत्र का निर्वाचन करने वाला । २-जो क्षेत्र, बालक, दुर्बल, ग्लानतथा प्राघूर्णकों के लिए उपयुक्त हो । २. पीठ-फलग संप्राप्ति-पीठ-फलग-चौकी आदि की उपलब्धि करना । ३. कालसमानयन-यथासमय स्वाध्याय, भिक्षा आदि की व्यवस्था । ४. गुरुपूजा-यथोचित विनय की व्यवस्था बनाए रखना । इस प्रकार उपर्युक्त आठ गणि सम्पदाओं के बत्तीस भेदों का विवेचन आगमों में मिलता है । इनके अतिरिक्त आगम व्यवहारी की चार "विनय प्रतिपत्तियों" का भी उल्लेख मिलता है जो इस प्रकार हैं। १. आचारविनय-आचार विषयक विनय सिखाना। २. श्रुतविनय--सूत्र और अर्थ की वाचना देना । ३. विक्षेपणा विनय--जो धर्म से दूर हैं, उन्हें धर्म में स्थापित करना, जो स्थित है उन्हें प्रवजित करना, जो च्युतधर्मा हैं, उन्हें पुनः धर्मनिष्ठ बनाना और उनके लिए हित सम्पादन करना ।। ४. दोषनिर्घात विनय--क्रोध-दोष-कांक्षा-विनयन के लिए प्रयत्न करना । १. व्यवहार सूत्र उद्देशक १०, भाष्यगाथा २९०. २. व्यवहारसूत्र उद्देशक १० भाष्यगाथा ३०३, ३०५-३२७. (ठाणं ५।१२४ की टिप्पण पृ० ६३० के आधार पर) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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