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३१० : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन
लिए आत्मनिन्दा करना मिथ्याकार है । तथाकार के विषय में आवश्यक नियुक्ति में कहा है कि जो मुनि कल्प और अकल्प को जानता है, महाव्रत में स्थित होता है, उसे 'तथाकार' का प्रयोग करना चाहिए । गुरु जब सूत्र पढ़ाएँ सामाचारी आदि का उपदेश दें, सूत्र का अर्थ बताएँ अथवा कोई बात कहें तब तथाकार का यह कहकर प्रयोग करना चाहिए कि 'आप जो कहते हैं वह अवितथ है – सच है ।' गुरुजनों की पूजा अर्थात् सत्कार के लिए आसन से उठकर खड़े होना अभ्युत्थान है । अभ्युत्थान के स्थान पर मूलाचार में सनिमंत्रण है । दसवीं उपसंपदा सामाचारी का अर्थ है-किसी विशिष्ट प्रयोजन से अर्थात् ज्ञान, दर्शन और चारित्र की विशेष प्राप्ति के लिए कुछ समय तक दूसरे आचार्य के पास रहना ।
उपसंपदा के अन्तर्गत एक दूसरे आचार्य के यहाँ गण, संघ आदि में ज्ञान ध्यानादि की विशेष साधना करने की सुविधा थी क्योंकि प्राचीन काल में साधुओं के अनेक गण थे और निम्नलिखित तीन कारणों से एक गण का साधु दूसरे गण में जा सकता था । १. ज्ञानार्थ उपसंपदा - ज्ञान की वर्त्तना ( पुनरावृत्ति या गुणन), संधान (त्रुटित ज्ञान को पूर्ण करने और ग्रहण ( नया ज्ञान प्राप्त करने ) के लिए उपसंपदा स्वीकार की जाती है उसे 'ज्ञानार्थ उपसंपदा २. दर्शन की वर्त्तना ( स्थिरीकरण ), संधान और दर्शन विषयक शास्त्रों के ग्रहण के लिए जो उपसंपदा स्वीकार की जाती है वह 'दर्शनार्थ उपसंपदा' है तथा ३. वैयावृत्त्य और तपस्या की विशिष्ट आराधना के लिए जो उपसंपदा स्वीकार की जाती है वह चारित्रार्थ उपसंपदा है |
इस प्रकार औधिक समाचार के उपर्युक्त विवेचन से श्रमण एवं आचार्यों के परस्पर व्यवहार-सम्बन्धी विविधताओं का ज्ञान सहज ही हो जाता है ।
द्वितीय पदविभागी समाचार के अन्तर्गत वीर्यवान् समर्थं श्रमण सूर्योदय से लेकर सारे दिन और रात अर्थात् अहोरात्र की परिपाटी में नियमादि का निरन्तर आचरण करता हुआ अपने गुरु से सम्पूर्ण श्रुत को पढ़कर और भी ज्ञान प्राप्ति हेतु दूसरे आचार्य के पास जाने के लिए वह विनय और प्रयत्न पूर्वक अपने गुरु से पूछता है – 'हे गुरो ! में आपके चरण प्रसाद से आज्ञापूर्वक अन्य शास्त्रपारंगत आचार्य के पास ज्ञानायतन ( उच्च ज्ञान प्राप्ति) हेतु जाना चाहता शिष्य अपने गुरु से पूछता
हूँ ।' इस प्रकार तीन, पाँच अथवा छह बार तक वह
१. आवश्यक नियुक्ति गाथा ६८९.
२ . वही गाथा ६९८, ६९९ ( उत्तराज्ज्ञपणाणि भाग २ टिप्पण पू० १८० से )
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