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व्यवहार : ३०५
स्थानांग में कहा है कि निम्नलिखित आठ बातों के विषय में श्रमणों को अधिक से अधिक उद्यम, प्रयत्न एवं श्रम करना चाहिए
श्रमणों को न सुने हुए धर्म को सुनने, सुने हुए धर्म को ग्रहण करने एवं याद रखने, संयम द्वारा आते हुए नए कर्मों को रोकने, तपस्या द्वारा पूर्वकृत कर्मों की निर्जरा करते हुए आत्म शुद्धि करने, नए शिष्य संग्रह करने, नए शिष्यों को साधु का आचार एवं गोचर सिखाने, ग्लान साधुओं की अग्लानता से सेवा करने तथा सार्मिक साधुओं में परस्पर कलह होने पर निष्पक्ष रहकर उसे शान्त करने का प्रयत्न करना चाहिए।' सम्यक-आचार (समाचार)
सम्यक् आचार को समाचार या सामाचार तथा सामाचार के भाव को “सामाचारी" कहते हैं । समाचार के दो भेद है-औधिक और पदविभागी। सामान्य आचरण को औधिक तथा सूर्योदय से लेकर अहोरात्र (सम्पूर्ण दिनरात) तक जो निरन्तर आचरण करते हैं उस सम्पूर्ण आचार को पदविभागी समाचार कहते हैं। इनमें औधिक समाचार तथा इसके भेद-प्रभेदों के निम्नलिखित विवेचन से श्रमण के सामान्य आचार अर्थात् व्यवहार सम्बन्धी जानकारी प्राप्त होती है । औधिक समाचार के दस भेद इस प्रकार हैं।"
१. इच्छाकार-सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रय तथा व्रतादि को सहर्ष स्वीकार करना तथा उनके अनुकूल स्वेच्छा से प्रवृत्ति करना इच्छाकार है। संयम एवं ज्ञान के उपकरण और तपादि उपकरण के लिए किसी वस्तु के माँगने में एवं योग-ध्यान आदि के करने में इच्छाकार करना चाहिए।
२. मिथ्याकार-अशुभ भावों द्वारा व्रतादि में हुए अतिचारों के लिए 'जं दुक्कडं तु मिच्छा' अर्थात् 'दुष्कृत मिथ्या हो'-ऐसा कहकर उन अतिचारों से दूर होना और उन्हें पुनः कभी न करना। इस प्रकार जो दुष्कृत अर्थात् पाप
१. स्थानांग ३।४।२१०. २. दुविहो समाचारो ओघोविय पद विभागिओ चेव ।।
दसहा ओधो भणिो अणेगहा पदविभागीय ॥मूलाचार ४।१२४. ३. औधिकः सामान्यरूपः । वही वृत्ति ४६१२४. ४. वही ४११३० वृत्ति सहित । ५. इच्छा मिच्छाकारो तघाकारो य आसिआ णिसिही ।
आपुच्छा पडिपुच्छा छंदण सणिमंत्रणाय उपसंपा । वही ४।१२५. ६. संजमणाणुवकरणे अण्णुवकरणे च जायणे अण्णे ।
जोगग्गहणादीसु य इच्छाकारो दु कायवो ॥मूलाचार ४१३१.
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