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________________ व्यवहार श्रमणाचार के प्रसंग में सामान्यतः श्रमणों के आचार, विचार, विधि-निषेध और प्रवृत्ति-निवृत्ति की व्यवस्था और उसके आधार को व्यवहार कहा जाता है । व्यवहार के अन्तर्गत मुनि के कर्त्तव्य और अकर्त्तव्य के निर्देश होने से मुमुक्षु की प्रवृत्ति-निवृत्ति को भी व्यवहार कहा जाता है । सामान्य आचार को भी व्यवहार कहा गया है । जैन आचारशास्त्रों में मुनियों के सम्यक् आचार या व्यवहार के लिए 'समाचार' सामाचार, समाचारी तथा सामाचारी शब्दों का प्रयोग मिलता है । आचार, व्यवहार एवं इतिकर्तव्यता को समाचारी कहते हैं । मूलाचार में समाचार शब्द के चार अर्थ किये गये हैं-समता भाव का आचार, सम्यक्आचार, समस्त श्रमणों का अहिंसा महाव्रतादि रूप समान आचार तथा समान परिमाण युक्त आचार। ___ आचार विषयक प्रायः सभी शास्त्रों से 'व्यवहार' शब्द 'प्रायश्चित्त' के अर्थ में भी प्रयुक्त होता है । यह व्यवहार श्रमण संघ की व्यवस्था का आधार-बिन्दु रहा है. जिसके माध्यम से चतुर्विध संघ को निरन्तर जागरूक, अप्रमत्त और विशुद्ध रखने का प्रयत्न किया जाता है। अतः चारित्र की आराधना तथा आत्मिक विकास में व्यवहार का महत्त्वपूर्ण स्थान है। श्रमण का जीवन-व्यवहार जीवन-व्यवहार अध्यात्मशोध का सर्वोत्कृष्ट मार्ग है । सच्चा श्रमण समाज से जितना लेता है उससे कहीं अधिक देता है। उसके दैनंदिन जीवन-व्यवहार में पूर्ण स्वावलम्बन रहता है । मात्र शरीर की आवश्यकता को पूरा करने के लिए भौतिक साधनों का कम से कम उपयोग करता है । वह इनका अर्जन और संचय भी नहीं करता । उनके जीवन का प्रत्येक क्षण और व्यवहार आत्मोत्कर्ष की साधना के निमित्त अट्ठाईस मूलगुणों के परिपेक्ष्य में होता है । उनके आचारविचार का सर्वस्व अहिंसा पर आधारित है। प्रत्येक व्यवहार यत्नाचार पूर्वक, मन, वचन और काय की विशुद्धता से युक्त होता है । हित, मित और प्रिय वाक्व्यवहार उनके जीवन का प्रमुख अंग है । अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य की सम्पूर्णता उनके श्रामण्य का प्रमुख अंग है । गमन, भाषण, आहार, वस्तुओं को उठाना१. समदा सामाचारो समो व आचारो । सवसि सम्माणं सामाचारो दु आचारो ॥ मूलाचार ४।१२३. २. व्यवहारं-प्रायश्चित्तं....भ० आ० विजयोदया ४५०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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