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________________ '२९२ : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन आचार्य वट्टकेर ने ही स्पष्ट कहा है जहाँ आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर • और गणधर-ये पाँच आधार (अनुग्रह करने में कुशल) नहीं हों वहाँ रहना उचित भगवती आराधना के अनुसार गंधर्व (गायन) शाला, नृत्यशाला, गजशाला, अश्वशाला, कुम्भकारशाला, यन्त्रशाला, शंख, हाथी-दांत आदि का काम करने वालों का स्थान, कोलिक, धोबी, बाजा बजाने वाले, डोम, नट आदि के घरों के समीप तथा राजमार्ग के समीप के स्थानों पर, चारणशाला, कोट्टकशाला (पत्थर का काम करने वालों का स्थान), कलालों का स्थान, रजकशाला, रसवणिकशाला (आरा से लकड़ी आदि चीरने का काम करने वालों का स्थान), पुष्पवाटिका, मालाकार का स्थान, जलाशय के समीप का स्थान-ये सब वसति के योग्य नहीं हैं। कल्पसूत्र में भी कहा है कि जो वसति अवःकर्म से व्याप्त होती है तथा सिंचन, सम्माजना (झाड.) से कचरा झाड़ना, जाले हटाना, घास बिछाना, पुताई करना; लेपन करना, सुन्दरता के लिए बार-बार गोबर आदि से लीपना, ठण्ड दूर करने के लिए अग्नि जलाना, बर्तन-भाण्ड इधर से उधर रखना आदि कार्य सावध क्रियाओं से युक्त होते हैं और जहाँ भीतर-बाहर असंयम की वृद्धि होती है ऐसी वसति में ठहरना नहीं कल्पता । तथा साधुओं और साध्वियों को एक ही द्वारवाले, एक ही आने-जाने के मार्गवाले ग्राम में यावत् राजधानी में एक ही समय दोनों को निवास करना नहीं कल्पता । मूलाचार के अनुसार भी विरतों (मुनियों) को आर्यिकाओं के उपाश्रय (वसतिका) में ठहरकर शयन, स्वाध्याय, आहार और व्युत्सर्ग आदि करना नहीं कल्पता। ५ वसतिका में प्रवेश और वहिर्गमन की विधि श्रमण के सामान्य आचरण रूप औधिक समाचार (सम्यक् आचरण) के इच्छाकार, मिथ्याकार तथाकार, आसिका, निसीहि (निषेधिका), पृच्छा, प्रतिपुच्छा, छन्दन, सनिमंत्रणा और उपसम्पत्-इन दस भेदों में आसिका और निषे. धिका-इन दो समाचारों का प्रयोग क्रमशः वसतिका में प्रवेश करते समय और १. तत्थ ण कप्पइ वासो जत्य इमे पत्थि पंच आधारा। आइरियउवज्झाया पवत्तथरा गणधरा य ॥ मूलाचार ४।१५५. २. भगवती आराधना ६३३-६३४. ३. कल्पसूत्र : सूत्र ३७ पृष्ठ ११२. ४. वही, सूत्र १२ पृ. ६८. ५. मूलाचार १०१६१. ६. मूलाचार ४।१२५-१२७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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