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________________ विहार चर्या : २९१ श्रमण जिस वसतिका में ठहरते हैं उसमें जिस आसन या प्रासुक स्थान पर वे रात्रि शयन करते हैं उसे संस्तर कहते हैं । उसका प्रतिलेखन करके उस संस्तर पर शयन करने का विधान है। सायंकाल और प्रातःकाल के समय जबकि हाथ की रेखायें स्पष्ट दिख रही हों ऐसे प्रकाश में संस्तर और आवास का प्रतिलेखन कर लेना चाहिए।' मूलाचारवृत्ति में चार प्रकार के संस्तर बताये हैं'भूमि, शिला, फलक और तृणसंस्तर २ श्वेताम्बर परम्परा के कल्पसूत्र में श्रमण को ठहरने योग्य निम्नलिखित वसतिकाओं का उल्लेख है-देवगृह, सभा, प्रपा (पानीशाला), आवसथ (परिब्राजकगृह), वृक्षमूल, आरामगृह, कन्दरा, आकर, गिरिगुफा, कर्मगृह, उद्यान, यानशाला, कुप्पशाला (गृहोपकरणशाला), यज्ञमण्डप (विश्रामस्थल), शून्यगृह, श्मशान, लयन और आपण । इनके अतिरिक्त सचित्त जल, मृत्तिका, बोज, वन-- स्पति एवं त्रस जीवों के संसर्ग से रहित, गृहस्थों द्वारा स्वयं के लिए बनवाये हुए, प्रासुक, एषणीय एकान्तयुक्त तथा स्त्री, पशु और पंडक (नपुंसक) से वजित तथा: प्रशस्त-निर्दोष वसति में ठहरना कल्पता है । ठहरने के अयोग्य (वर्जनीय) क्षेत्र-जिन स्थानों या क्षेत्रों में कषाय की उत्पत्ति, आदर का अभाव, इन्द्रिय विषयों की अधिकता, स्त्रियों का बाहुल्य, दुःखों और उपसर्गों का बाहुल्य हो ऐसे क्षेत्रों का भिक्षु वर्जन (त्याग) करे, अर्थात् ऐसे स्थानों में नहीं ठहरना चाहिए। गाय आदि तिर्यचनी, कुशील स्त्री, भवनवासी, व्यंतर आदि सविकारणी देवियां, असंयमी गृहस्थ-इन सबके निवासों का अप्रमत्त श्रमण शयन करने, ठहरने या खड़े होने आदि के निमित्त सर्वथा त्याज्य समझते हैं। जो क्षेत्र राजा विहीन हो या जहाँ का राजा दुष्ट हो, जहाँ कोई प्रव्रज्या (दीक्षा) न लेता हो, जहाँ सदा संयमघात की सम्भावना बनी रहती हो-ऐसे क्षेत्रों का श्रमण को परित्याग करना चाहिए। १. मूलाचार ४।७२.. २. मूलाचारवृत्ति ४।७२. . ३. कल्पसूत्र, सूत्र ३७ पृष्ठ ११२. . ४. जत्थ कसायुप्पत्तिरभत्तिदियदारइत्थिजणबहुलं । दुक्खमुवसग्गबहुलं भिक्खू खेत्तं विवज्जेऊ ॥ मूलाधार १०५८.. . . ५. वही ५।१६०. ६. वही १०६०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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