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२९० : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन श्रमणों के ठहरने योग्य स्थान-वसतिका '
श्रमण एकान्तवासी होते हैं । ऐसे ही श्रमण निर्विघ्न रहकर आत्म-स्वरूप के चिन्तन में लीन रहकर मन, वचन और काय की अशुभ प्रवृत्तियों को रोकते हैं । समिति गुप्ति का पालन करते हैं।' अतः श्रमण को ठहरने के लिए ध्यान और • ध्येय में विघ्न के कारणभूत स्त्री, पशु और नपुंसक आदि से रहित प्रदेश विविक्त स्थान योग्य होता है। क्योंकि पूजा-प्रतिष्ठा के अनिच्छुक संसार, शरीर और विषयों से उदासीन आभ्यन्तर तप में कुशल, शान्त और उपशमशील (मन्दकषाय) महा पराक्रमी तथा क्षमादि परिणाम युक्त श्रमण को श्मशानभूमि, गहन वन, निर्जन" स्थान, महाभयानक उद्यान तथा अन्य ऐसे ही एकान्त स्थानों में रहना चाहिए। मूलाचार के अनुसार गिरि-कन्दराओं, श्मशानभूमि, शून्यागार, वृक्षमूल आदि वैराग्यवर्धक स्थानों में श्रमण ठहरते हैं। क्योंकि कलह, व्यग्रता बढ़ाने वाले शब्द, संक्लेश भाव, मन की व्यग्रता, असंयत जनों का संसर्ग, तेरे-मेरे का भाव, ध्यानतथा अध्ययन आदि में विघ्न-इन दोषों का सद्भाव विविक्त वसतिकाओं में नहीं
होता।
भगवती आराधना में श्रमण के ठहरने योग्य उपर्युक्त स्थानों के अतिरिक्त उन वसतिकाओं में भी ठहरना योग्य माना गया है जो उद्गम, उत्पादन एवं एषण दोषों से रहित निर्जन्तुक हों । संस्कार (सजावट) रहित उस वसतिका में प्रवेश एवं बर्हिगमन की सुविधा हो, अपने उद्देश्य से जिसमें लिपाई-पुताई आदि नहीं कराई हो, जिसकी दीवार मजबूत हो, कपाट सहित हो, गांव के बाहर ऐसे स्थान में स्थित हो जहाँ बाल, वृद्ध और चार प्रकार के गण (संघ) अर्थात् मुनि, आर्यिका, श्रावक और श्राविका आ-जा सकता हो-ऐसी वसतिका; उद्यानघर गुफा अथवा शून्यघर में श्रमण ठहर सकते हैं । शून्यघर, पहाड़ की गुफा, वृक्षमूल आगन्तुकों के लिए बनाये गये वेश्म (अतिथिशाला), देवकुल, शिक्षाघर, किसी के द्वारा न बनाया गया स्थान, आरामघर (क्रीडा के लिए आये हुए लोगों के ठहरने के लिए बने आवास)-ये सब विविक्त वसतिकाओं के अन्तर्गत आते है । १. भगवती आराधना २३२-२३३. २. धवला १३॥ ५, ४, २६ पृ० ५८८. ४. कार्तिकेयानुप्रेक्षा ४४६, ४४७. ४. गिरिकंदरं मसाणं सुण्णागारं च रुक्खमूलं वा ।।
ठाणं विरागबहुलं धीरो भिक्खु णिसेवेऊ । मूलाचार १०१५९., बोधपाहुड ४२.... ५. भगवती आराधना-२३२. ६. वही ६३६-६३८. ७. सुण्णाघरगिरिगुहारुक्खमूल आगंतुगारदेवकुले।
अकदप्पन्भारारामघरादीणि य विवित्ताई ॥ भ० आ० २३१.
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