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आहार, विहार और व्यवहार : २७९ ६. दायक दोष :--धाय, मद्यपायी, रोगी, मृतक के सूतक सहित, नपुंसक, “पिशाचग्रस्त, नग्न, मलमूत्र करके आये हुए, मूर्छा का रोगी या मूछित, वमन करके आये हुए, रुधिर सहित, वेश्या, श्रमणी (आर्यिका), तेल मालिश करनेवाली, अतिबाला (अतिमुग्धा), अतिवृद्धा, खाती या चबाती हुई, गर्भिणी (पांच महीने या इससे ऊपर गर्भ वाली), अंधलिका (अंधी), किसी के आड़ में खड़ी हुई, बैठी हुई, ऊँचे-नीचे खड़ी हुई महिला आदि द्वारा दिया गया आहार दायक दोष युक्त है । तथा फूंकना, जलाना, सारण करना (अग्नि में लकड़ियाँ डालना), प्रच्छादन (अग्नि को भस्म आदि से ढकना), विध्यापन (अग्नि को जल आदि से -बुझाना), निर्वात (लकड़ो आदि को अग्नि से हटाकर समाप्त कर देना) घट्टन (कुड्य आदि वस्तु विशेष से अग्नि को दबा देना) इत्यादि अग्निकार्य करते हुए आकर अहार देना भी दायक दोष है। तथा लोपने, मांजने-धोने का कार्य करके एवं दूध पीते हुए बालक को छोड़कर आहार-दान करना दायक दोष है।'
७. उन्मिश्र दोष :--पृथ्वी, जल, हरितकाय, बीज एवं सजीव वस-इन पाँचों से मिश्र हुआ आहार उन्मिश्र दोष युक्त होता है ।
८. अपरिणत दोष :-तिलोदक (तिल का धोवन), तण्डुलोदक, उष्णोदक, ‘चणोदक (चने का धोवन), तुषोदक तथा अविध्वस्त जल जो परिणत नहीं हुआ है (अग्न्यादि से अपरिपक्व) उसे ग्रहण करना अपरिणत दोष है।३ यहाँ अविध्वस्त से तात्पर्य है-अपने वर्ण, गंध, २स को नहीं छोड़ा है ऐसा जल, अन्य भी उसी प्रकार से हरड़ आदि के चूर्ण से प्रासुक नहीं किये हैं अथवा जल में हरड़ आदि का चूर्ण इतना थोड़ा डाला है कि वह जल अपने रूप, गंध और रस से परिणत नहीं हुआ है, ऐसा जल ग्रहण करना अपरिणत दोष है।४
९. लिप्त दोष :-गेरु, हरिताल, सेटिका (सेलखड़ी अर्थात् सफेद मिट्टी या खड़िया), मनशिल (आमपिष्ट अथवा चावल आदि का चूर्ण अर्थात् आटा) सप्रवाल (अपक्व शाक अथवा अप्रासुक जल) इन वस्तुओं से लिप्त या गीले हाथ अथवा वर्तन से आहार देना लिप्त दोष है।
१०. छोटित (त्यक्त या परित्यजन) दोष :--हाथ की अंजुलि से बहुत कुछ नीचे गिराते हुए या इष्ट पदार्थों को ग्रहण करते हुए तथा प्रतिकूल पदार्थों को गिराते हुए अथवा गिरते हुए दिया गया आहार ग्रहण करना त्यक्त दोष है ।
ये दस अशन दोष सावद्य (हिंसा) करने वाले होने से त्याज्य हैं क्योंकि इनसे जीवदया का पालन भी नहीं होता और लोक-निन्दा भी होती है । १. मूलाचार ६।४९.५२. २. वही ६१५३. ३. वही ६१५..
४. मूलाचार वृत्ति ६१५४. ५. बही ६।५५.
६. वही, वृत्ति सहित ६।५६.
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