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२७८ : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन
१५ चूर्ण दोष :-नेत्रों के लिए अंजनचूर्ण और शरीर को भूषित करने वाले भूषणचूर्ण-इन चूर्णों को बताकर आहार उत्पन्न कराना चूर्णदोष है ।
१६ मूलकर्म दोष :-अवशों का वशीकरण करना और वियुक्तजनों का संयोग कराके आहार उत्पन्न कराना मूलकर्म दोष है ।।
-इस प्रकार ये सोलह उत्पादन दोष हैं । एषणा (अशन) विषयक दस दोष :
शंकित, म्रक्षित, निक्षिप्त, पिहित, संव्यवहरण, दायक, उन्मिश्र, अपरिणत, लिप्त और छोटित (त्यक्त)-ये दस अशन दोष हैं।
१. शंकित दोष :-अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य-ये चार प्रकार के आहार हैं । इनके विषय में अध्यात्म (चित्त) या आगम में ऐसा सन्देह कि यह योग्य है या अयोग्य ?---ऐसा संदेह रखते हुए उसी आहार को ग्रहण करना शंकित दोष है।४
२. म्रक्षित दोष :-चिकनाई युक्त हाथ, बर्तन या कलछी-चम्मच से दिया गया भोजन म्रक्षित दोष युक्त है । इसमें समूर्च्छन आदि सूक्ष्म जीवों की विराधना' का दोष देखा जाता है।
३. निक्षिप्त दोष :-सचित्त पृथ्वी, जल, अग्नि, वनस्पति, बीज एवं त्रस जीव तथा इन पर रखी हुई आहार योग्य वस्तु भी सचित्त (चित्तकर सहित जीवयुक्त तथा अप्रासुक) हो जाती है। इन जीवकायों की अपेक्षा से वह वस्तु भी छह भेद रूप है। ऐसे आहार को लेना निक्षिप्त दोष है । यहाँ यह ज्ञातव्य है कि अंकुर शक्ति के योग्य गेहूँ आदि धान्य बीज कहलाता है क्योंकि ये बीज जीवों की उत्पत्ति के योग्य तथा योनिभूत होने के कारण इन्हें सचित्त कहा है।
४. पिहित दोष :-जो सचित्त वस्तु से अथवा अचित्त भारी वस्तु से ढका हो उसे खोलकर दिया गया आहार लेना पिहित दोष है ।
५. संव्यवहार दोष :--दान देने के लिए यदि बर्तन आदि को शीघ्रता से बिना देखे खींचकर उसमें रखी आहार योग्य वस्तु दो जाने पर ग्रहण करना संव्यवहार दोष है। १-२. मूलाचार ६।४१-४२. ३. संकिदमक्खिदणिक्खिदणिक्खिदपिहिदं संववहरणदायगुम्मिस्से । ____ अपरिणदलित्तछोडिद एसणदोसाइं दस एदे । वही ६।४३. ४-५. वही, ६।४४, ४५. ६.८. वहो, ६।४६-४८.
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