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________________ आहार, विहार और व्यवहार : २७७ ६. चिकित्सा दोष :-चिकित्सा शास्त्र के आठ भेद है-(१) कौमार (बालवैद्य अर्थात् मासिक, सांवत्सरिक आदि पीड़ा देने वाले ग्रहों के निराकरण के लिए उपायभूत शास्त्र, (२) तनुचिकित्सा, (३) रसायन, (४) विष, (५) भूत (६) क्षारतन्त्र (सड़े हुए घाव आदि का शोधन करने वाली चिकित्सा), (७) शलाकिक अर्थात् शलाका से होने वाली चिकित्सा तथा (८) शल्य चिकित्सा । इनके द्वारा गृहस्थ का उपकार करके उनसे आहारादि लेना चिकित्सा दोष है ।' ७-१०. क्रोध, मान, माया और लोभ दोष :-इन दोषों के माध्यम से भिक्षा ग्रहण करना । यहाँ आचार्य वट्टकेर ने इन चारों दोषों के चार उदाहरण (घटनाओं सहित) इस प्रकार बताये हैं-(१) हस्तिकल्प नामक पत्तन (नगर) में किसी साधु ने क्रोध करके आहार का उत्पादन कराके ग्रहण किया । (२) वेन्नवट नगर में किसी संयत ने मान करके, (३) वाराणसी नगरी में किसी साधु ने माया करके तथा (४) रासियाण (राशियान देश या स्थान) में अन्य किसी संयत ने लोभ दिखाकर आहार उत्पन्न कराया और ग्रहण किया । ११-१२. पूर्व एवं पश्चात् संस्तुति दोष :-तुम दानपति, अथवा यशस्वी हो-इस प्रकार दाता के सामने उसकी प्रशंसा करना तथा उसके दान देना भूल जाने पर उसे याद करा देना पूर्वसंस्तुति दोष है । इसी तरह दान लेकर पुनः प्रशंसा करना पश्चात्-संस्तुति दोष है ।। १३-१४ विद्या तथा मंत्र दोष :-जो साधित करने पर सिद्ध होती है उन्हें साधित सिद्ध विद्या कहते हैं तथा जो पढ़ते ही सिद्ध हो अर्थात् जो मंत्र पढ़ने मात्र से सिद्ध हो जाता है वह पठितसिद्ध मन्त्र है । इन विद्याओं एवं मन्त्रों को प्रदान करने की आशा देकर तथा उनका माहात्म्य बतलाकर दाता का आहार दान हेतु प्रेरित कर आहार ग्रहण करना अथवा आहार दायक (दाता) देवी-देवताओं को विद्या तथा मन्त्र से बुलाकर उनको आहार के लिए सिद्ध करना विद्या मन्त्र दोष है।६ १. मूलाचार ६।३३. २. वही ६।३४. ३. कोधो य हस्थिकप्पे माणो वेणायडम्मि णयरम्म । माया वाणारसिए लोहो पुण रासियाणम्मि ॥ वही ६।३५, वृत्ति सहित. ४ कारंजा की हस्तलिखित प्रति में “वाराणसिए" पाठ है । ५. मूलाचार ६।३६, ३७. “६. मुलाचार ६।३८-४०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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